संस्मरण सत्तर के दशक की शुरुआत में लिखे दो-तीन निबंधों से ही मार्क्सवादी आलोचना में ओम प्रकाश ग्रेवाल की स्पष्ट पहचान बन गई थी और मित्रों-सहकर्मियों के साथ-साथ विरोधियों ने
संस्मरण सत्तर के दशक की शुरुआत में लिखे दो-तीन निबंधों से ही मार्क्सवादी आलोचना में ओम प्रकाश ग्रेवाल की स्पष्ट पहचान बन गई थी और मित्रों-सहकर्मियों के साथ-साथ विरोधियों ने
संस्मरण सत्तर के दशक की शुरुआत में लिखे दो-तीन निबंधों से ही मार्क्सवादी आलोचना में ओम प्रकाश ग्रेवाल की स्पष्ट पहचान बन गई थी और मित्रों-सहकर्मियों के साथ-साथ विरोधियों ने