एक उर्दू शायर ने बड़े दर्द के साथ लिखा है- तुम्हें ले दे के, सारी दास्तां में, याद है इतना; कि आलमगीर हिन्दुकुश था, ज़ालिम था, सितमगर था!
एक उर्दू शायर ने बड़े दर्द के साथ लिखा है- तुम्हें ले दे के, सारी दास्तां में, याद है इतना; कि आलमगीर हिन्दुकुश था, ज़ालिम था, सितमगर था!
जिला जीन्द के खटकड़ गांव में 10 अप्रैल, 1958 में जन्म। प्रभाकर की शिक्षा प्राप्त की। कहानी, गीत, कविता, कुण्डलियां तथा दोहे लेखन। समसामयिक ज्वलंत विषयों पर दो सौ से अधिक रागनियों की रचना। रागनी-संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। वर्तमान में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक में कार्यरत।
फ़ेसबुक पै फ्रेंड पांच सौ पड़ोसी तै मुलाकात नहीं तकनीक नई यो नया जमाना रही पहलड़ी बात नहीं