रविन्द्रनाथ टैगोर की कविता – धूलि-मन्दिर

भजन-पूजन साधना-आराधना सब-कुछ पड़ा रहे, अरे, देवालय का द्वार बन्द किए क्यों पड़ा है!अँधेरे में छिपकर अपने-आपचुपचाप तू किसे पूजता…