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राहुल सांकृत्यायन और आदिबौद्ध दर्शन – डॉ. सेवा सिंह

आदिम वर्गपूर्व समाज के निषेध की देहरी पर खड़े बुद्ध केवल इससे उत्पन्न दुख को ही देख सके। अतः बुद्ध के पास केवल यही विकल्प था कि वे आगे न देखकर तेजी से विलुप्त होते आदिम साम्यवादी समाज की ओर देखते जो इतिहास की प्रगति के साथ पूर्णतः लुप्त हो जाने को था। यह अधिक से अधिक एक वास्तविक समस्या का वैचारिक समाधान था। उन्होंने अपना सारा ध्यान इस बात पर केन्द्रित किया कि नये वर्ग विभाजित समाज में ही मानो एक प्रकार के निर्लिप्त जीवों का विकास किया जाय जिसके अन्दर ही स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के विस्तृत मूल्यों को व्यवहार में लाया जा सके। (लेख से)

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संत रैदास : वाणी और मानव-मुक्ति – डॉ. सेवा सिंह

रविदास की मानव मुक्ति में न पौराणिक स्वर्गारोहण है और न ही किसी अदृश्य लोक में बैकुण्ठ वास। इस मुक्ति में कोई दुरूह ब्रह्म विद्या ज्ञान भी नहीं है। वे अपनी वाणी में अपने परिवेश की समस्याओं का आत्मनिष्ठरूप प्रतिपादित करते हुए व्यक्ति को एक उच्चभावपूर्ण स्थिति में ले जाना चाहते हैं जिसमें उसके समस्त बन्धनों का अस्तित्व बना नहीं रह सकता। (लेख से)

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प्रतिभा और आरक्षण – रजनी दिसोदिया

आजकल आरक्षण विरोध का जो मुद्दा गरमाया है उसमें भी बड़ा कंफ्यूजन है। क्या यह पूरी आरक्षण व्यवस्था का विरोध है या अन्य पिछड़ा वर्ग के 27% आरक्षण का विरोध है या यह पिछले सत्तर वर्षों से भीतर ही भीतर सुलगती उस खुन्नस का विस्फोट है जिसे इस ओ.बी.सी. आरक्षण ने और हवा दे दी है।

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जाति-व्यवस्था का क्षय हो – ई. वी. रामासामी पेरियार

उच्च जाति के धूर्त व्यक्तियों ने अत्यन्त धूर्ततापूर्वक जाति और धर्म को आपस में जोड़ दिया; ताकि उनको अलग करना मुश्किल हो जाए। इसलिए, जब आप जाति को नष्ट करने का प्रयास करते हैं, तो आपको यह डर नहीं लगना चाहिए कि धर्म भी नष्ट हो जाएगा।

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कुछ कविताएँ- असंघोष

मध्यप्रदेश के क़स्बा जावत में 1962 में जन्मे असंघोष नई पीढ़ी की दलित कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं. खामोश नहीं हूँ मैं,
हम गवाही देंगे, मैं दूँगा माकूल जवाब, समय को इतिहास लिखने दो, हम ही हटाएँगे कोहरा, ईश्वर की मौत आदि सभी काव्य संग्रह सन् 2000 के बाद प्रकाशित हुए हैं. दुसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि असंघोष इस सदी के दलित चेतना के निरंतर सक्रिय कवियों में अग्रणी हैं.

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दलित विमर्श के अंतर्विरोध- अमरनाथ

दलित आन्दोलन का उद्देश्य क्या होना चाहिए ? –एक ऐसे समाज की स्थापना जिसमें सामाजिक –आर्थिक विषमता न हो, जो ऊंच-नीच की अवधारणा से रहित हो और जो सामाजिक समानता पर आधारित हो. किसी भी सिद्धांत को परखने की कसौटी उसका व्यवहार है. (लेख से)

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अछूत समस्या – भगतसिंह

Post Views: 18 काकीनाडा में 1923 मे कांग्रेस-अधिवेशन हुआ। मुहम्मद अली जिन्ना ने अपने अध्यक्षीय भाषण मे आजकल की अनुसूचित जातियों को, जिन्हें उन दिनों ‘अछूत’ कहा जाता था, हिन्दू…

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गुरु रविदास और उनका बेगमपुरा – सुभाष चन्द्र

Post Views: 420 मध्यकालीन संतों और भक्तों के जन्म-मृत्यु व पारिवारिक जीवन के बारे में आमतौर पर मत विभिन्नताएं हैं। संत रविदास की कृतियों में उनके रैदास, रोहीदास, रायदास, रुईदास…