All posts tagged in दलित विमर्श

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भूमिका: हिन्दुस्तान की भूमि परिवर्तनवादी थी। वर्तमान में समतावादी,धर्मनिरपेक्ष भी है। तत्कालीन समय भले ही भारत कई संस्थान में विभाजित था,किंतु सभी जाति, धर्म के लोग मिलजुल कर रहते थे।

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शिक्षा, रोजगार में आर्थिक सहायता सामाजिक व राजनीतिक समानता का पहला चरण – आरक्षण भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त एक सामाजिक व्यवस्था है। जिसका उद्देश्य देश को एकता व अखण्डता के

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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उन्नीसवीं सदी के समाज विचारक और दार्शनिक लुडविग फायर बाख ने मनुष्य की सामाजिक ऐतिहासिक भूमिका पर विचार करते हुए एक बहुत दिलचस्प बात की थी- मनुष्य वही होता है

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कविताApril 19, 2024

हाल ही में युवा कवि विनोद की दलित कविताएँ प्रकाशित हुई थी। उन कविताओं की सराहना की गई। हरियाणा की हिंदी कविता में ईशम सिंह दलित विमर्श की गंभीर कविताओं

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कविताFebruary 4, 2024

विनोद कुमार ने हाल ही में हिंदी साहित्य में अपना एम.ए. पूरा किया है। दलित साहित्य के पठन – लेखन में विशेष रूचि है। जाति व्यवस्था के क्रूरतम रूप और

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वीरांगना फूलन देवी, यह नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। लोग फूलन देवी को बेंडिट क्‍वीन के नाम से भी जानते हैं।चंबल के बीहड़ों में डकैतों का जीवन जीने

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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