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संत रैदास : वाणी और मानव-मुक्ति – डॉ. सेवा सिंह

रविदास की मानव मुक्ति में न पौराणिक स्वर्गारोहण है और न ही किसी अदृश्य लोक में बैकुण्ठ वास। इस मुक्ति में कोई दुरूह ब्रह्म विद्या ज्ञान भी नहीं है। वे अपनी वाणी में अपने परिवेश की समस्याओं का आत्मनिष्ठरूप प्रतिपादित करते हुए व्यक्ति को एक उच्चभावपूर्ण स्थिति में ले जाना चाहते हैं जिसमें उसके समस्त बन्धनों का अस्तित्व बना नहीं रह सकता। (लेख से)

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मध्यकालीन भक्ति-आन्दोलन और मानवीय सरोकार – डॉ. सेवा सिंह

भक्ति आंदोलन के उद्भव और मूल्यांकन का इतिहास बोध तथाकथित भारतीय पुनर्जागरण की हिन्दुवादी दृष्टि से ग्रस्त है। इसके अन्तर्गत भारतीय इतिहास के उत्तर मध्यकाल की समस्त उपलब्धियों को नजरन्दाज करने के प्रयास में भक्ति आन्दोलन के योगदान की छवि नहीं बन सकी। भारतीय पुनर्जागरण के उपजीव्य दर्शनिक स्रोत वेद और वेदान्त हैं। इस दृष्टिकोण से यह धारणा पल्लवित हुई है कि भारतवर्ष पिछले आठ सौ वर्षों से परतन्त्र रहा है। इसका अनुसिद्धान्त है इस्लाम की प्रतिक्रिया में भक्ति आन्दोलन का उद्भव । (लेख से )