जागो फिर एक बार – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

कविता जागो फिर एक बार!प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हेंअरुण-पंख तरुण-किरणखड़ी खोलती है द्वार-जागो फिर एक बार! आँखे अलियों-सीकिस…