प्रसाद : जैसा मैंने पाया – अमृतलाल नागर

प्रसादजी से मेरा केवल बौद्धिक संबंध ही नहीं, हृदय का नाता भी जुड़ा हुआ है। महा‍कवि के चरणों में बैठकर…

चिन्ता-जयशंकर प्रसाद

चिन्ता करता हूँ मैं जितनी उस अतीत की, उस सुख की: उतनी ही अनन्त में बनती, जातीं रेखाएँ दुख की।…

बीती विभावरी – जयशंकर प्रसाद

बीती विभावरी जाग री। अम्बर-पनघट पर डुबो रही तारा-घट ऊषा नागरी। खग कुल कुल-कुल-सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल…

अरुण यह मधुमय देश हमारा – जयशंकर प्रसाद

अरुण यह मधुमय देश हमारा! जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा । सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही…