रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है। उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता न सोता है। जानता
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है। उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता न सोता है। जानता