चन्द्रकांत देवताले हिंदी के उन कवियों में से हैं जिनकी कविता ने पिछली सदी और वर्तमान सदी को जोड़ा है। उनकी कविता में उनका अपना 'मैं' यानि कि 'प्रथम पुरुष' अंतर्दृष्टि के सन्दर्भ में विस्तार पाता है। मार्क्सवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता सर्वविदित है। यहाँ जिन कविताओं का चयन किया गया है उनमें शुरूआती तीन कविताएँ तो भाषा के प्रति उनकी संजीदगी को प्रकट करती हैं, चौथी कविता एक तरह से उनकी जीवन दृष्टि को प्रस्तुत करती है तथा पांचवी कविता 'नागझिरी' लम्बी कविता है जोकि गाँव के भीतर धक्का मुक्की करके घुसते हुए शहर का बिम्बात्मक बयान है।