घरौंदे नज़रे-आतिश और ज़ख्मी जिस्मो-जां कब तकबनाओगे इन्हें अख़बार की यों सुर्खियाँ कब तक यूँ ही तरसेंगी बाशिंदों की खूनी बस्तियाँ कब तकयूँ ही देखेंगी उनकी राह गूंगी खिड़कियाँ कब
घरौंदे नज़रे-आतिश और ज़ख्मी जिस्मो-जां कब तकबनाओगे इन्हें अख़बार की यों सुर्खियाँ कब तक यूँ ही तरसेंगी बाशिंदों की खूनी बस्तियाँ कब तकयूँ ही देखेंगी उनकी राह गूंगी खिड़कियाँ कब