Post Views: 14 हम विद्रोही, हम क्रान्ति-दूत, हम हैं विप्लववादी,तुफानों से ही लड़ने के हम हैं हरदम आदी। है धर्म हमारा दीनों के दुखों को पी लेना,है कर्म हमारा फटे…
चकबस्त बृजनारायण
Post Views: 9 यह हिन्दोस्ताँ है हमारा वतन,मुहब्बत की आँखों का प्यारा वतन,हमारा वतन दिल से प्यारा वतन। वह इसके दरखतों की तैयारियाँ,वह फल-फूल पौधे वह फुलवारियाँ,हमारा वतन दिल से…
‘वकार’ अम्बालवी
वकार अम्बालवी की क्रान्तिकारी कविता
किसानी चेतना की एक रागनी और एक ग़ज़ल- मनजीत भोला
मनजीत भोला का जन्म सन 1976 में रोहतक जिला के बलम्भा गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ. इनके पिता जी का नाम श्री रामकुमार एवं माता जी का नाम श्रीमती जगपति देवी है. इनका बचपन से लेकर युवावस्था तक का सफर इनकी नानी जी श्रीमती अनारो देवी के साथ गाँव धामड़ में बीता. नानी जी की छत्रछाया में इनके व्यक्तित्व, इनकी सोच का निर्माण हुआ. इन्होने हरियाणवी बोली में रागनी लेखन से शुरुआत की मगर बाद में ग़ज़ल विधा की और मुड़ गए. इनकी ग़ज़लों में किसान, मजदूर, दलित, स्त्री या हाशिये पर खड़े हर वर्ग का चित्रण बड़ी संजीदगी के साथ चित्रित होता है. वर्तमान में कुरुक्षेत्र में स्वास्थ्य निरीक्षक के पद पर कार्यरत हैं.
धर्म में लिपटी वतनपरस्ती क्या-क्या स्वांग रचाएगी – गौहर रज़ा
‘देस हरियाणा’ और ‘सत्यशोधक फाउंडेशन’ द्वारा 14-15 मार्च 2020 को कुरुक्षेत्र स्थित सैनी धर्मशाला में आयोजित ‘हरियाणा सृजन उत्सव-4’ में दोनों दिन सवाल उठाने और चेतना पैदा करने वाली कविताएं गूंजती रही। देश के जाने-माने वैज्ञानिक एवं शायर गौहर रज़ा के कविता पाठ के लिए विशेष सत्र आयोजित किया गया। सत्र का संचालन रेतपथ के संपादक डॉ. अमित मनोज ने किया। पत्रकार गुंजन कैहरबा ने इसे लिपिबद्ध करके यहाँ प्रस्तुत किया है – सं.
मनजीत भोला की ग़ज़लें
मनजीत भोला का जन्म सन 1976 में रोहतक जिला के बलम्भा गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ. इनके पिता जी का नाम श्री रामकुमार एवं माता जी का नाम श्रीमती जगपति देवी है. इनका बचपन से लेकर युवावस्था तक का सफर इनकी नानी जी श्रीमती अनारो देवी के साथ गाँव धामड़ में बीता. नानी जी की छत्रछाया में इनके व्यक्तित्व, इनकी सोच का निर्माण हुआ. इन्होने हरियाणवी बोली में रागनी लेखन से शुरुआत की मगर बाद में ग़ज़ल विधा की और मुड़ गए. इनकी ग़ज़लों में किसान, मजदूर, दलित, स्त्री या हाशिये पर खड़े हर वर्ग का चित्रण बड़ी संजीदगी के साथ चित्रित होता है. वर्तमान में कुरुक्षेत्र में स्वास्थ्य निरीक्षक के पद पर कार्यरत हैं.
दो हरियाणवी ग़ज़लें- कर्मचंद केसर
कर्मचंद केसर हरियाणा राज्य के कैथल जिले में रहते हैं। केसर की गज़लें पाठक का हरियाणवी समाज से सीधा संबंध स्थापित कराती हैं। प्रस्तुत है उनकी दो गज़लें:
दस हरियाणवी गज़लें- मंगत राम शास्त्री
मंगत राम शास्त्री- जिला जींद के ढ़ाटरथ गांव में सन् 1963 में जन्म। शास्त्री (शिक्षा शास्त्री), हिंदी तथा संस्कृत में स्नातकोत्तर। साक्षरता अभियान में सक्रिय हिस्सेदारी तथा समाज-सुधार के कार्यों में रुचि। ज्ञान विज्ञान आंदोलन में सक्रिय भूमिका। “अध्यापक समाज” पत्रिका का संपादन। कहानी, व्यंग्य, गीत, रागनी एंव गजल विधा में निरंतर लेखन तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। “अपणी बोली अपणी बात” नामक हरियाणवी रागनी-संग्रह प्रकाशित।
वक्ता और सरोता की जिब एक्के भास्सा सै – मंगतराम शास्त्री
हरियाणवी ग़ज़ल
हांसण खात्तर मनवा बेफिकरा चहिये सै – मंगतराम शास्त्री
हरियाणवी ग़ज़ल