Tag: कविता

कदे सोच्या के ?- विक्रम राही

Post Views: 132 विक्रम राही वाटस एप पै पोस्ट फारवर्ड एडवांस हो चाहे हो बैकवर्ड कदे सोच्या के ? फेसबुक पै रहै रोज हाजरी पड़ोस मैं चाहे आग लागरी कदे

Continue readingकदे सोच्या के ?- विक्रम राही

चुप की दाद – विनोद सहगल

Post Views: 558 अल्ताफ़ हुसैन हाली पानीपती ऐ मांओं बहनों, बेटियों, दुनियां की ज़ीनत1 तुमसे हैमुल्कों की बस्ती हो तुम्ही, क़ौमों की इज़्ज़त तुमसे है तुम घर की हो शहज़ादियाँ,

Continue readingचुप की दाद – विनोद सहगल

चरण आपके पुष्प – स्वामी रामदास

Post Views: 233 स्वामी रामदास (1884-1963) अनुवाद दिनेश दधिची मधुमक्षिका पुष्प पर जैसे मँडराती है उसी प्रकार हृदय मेरा, हे प्रभो! आपके चरणों पर मँडराता है। वह करती है मधु-पान

Continue readingचरण आपके पुष्प – स्वामी रामदास

साथ तैरने वालों को मशविरा – कमला दास

Post Views: 703 कमला दास (1934-2009) अनुवाद दिनेश दधिची  साथ तैरने वालों को मशविरा तैरना सीखोगे जब तुम उस नदी में मत उतरना जो न बहती हो समंदर की तरफ़

Continue readingसाथ तैरने वालों को मशविरा – कमला दास

आखिरी कश – शर्मिला

Post Views: 107 शर्मिला चेहरे बदले हम वहीं हैं एडिय़ाँ सदियों से मुँह खोले सिसक रही हैं हथेलियों में टिब्बें उग आए हैं मुट्ठी में चार दाने धुजते हाथ जला

Continue readingआखिरी कश – शर्मिला

एक सरकार को श्रद्धांजलि – फ़िलिप लार्किन

Post Views: 166 फ़िलिप लार्किन (1922-1985) अनुवाद डा. दिनेश दधिची एक सरकार को श्रद्धांजलि अगले बरस सैनिकों को घर ले आएँगे। पैसे की तंगी है और यह ठीक भी है.

Continue readingएक सरकार को श्रद्धांजलि – फ़िलिप लार्किन

किसान-जसबीर सिंह लाठरों

Post Views: 105 जसबीर सिंह लाठरों  दीप नहीं, दिल जलेंगें ख़ाली फ़सलों की हुई ऐसी बदहाली खेती जो छोड़ देगा किसान देश में कैसे रहेगी खुशहाली? हर तरफ महानगरों में

Continue readingकिसान-जसबीर सिंह लाठरों

अनसुलझा प्रश्न

Post Views: 182 विनोद सिल्ला  बनाया जिसने राजमहलों, भवनों, मिनारों को तरसता रहा वो ताउम्र छाँव के लिए खोदा जिसने तालाबों, कुओं, बावड़ियों को तरसता रहा वो ताउम्र पेयजल के

Continue readingअनसुलझा प्रश्न

मिट्टी में मिट्टी होने के सिवाय – ओम नागर

Post Views: 104 1 कौन हो तुम ? किसान हूँ साहेब क्या चाहिए कुछ नही थोड़ा… थोड़ा क्या पूरा बोलों यही कि थोड़ी कर्ज माफ़ी और थोड़ा दाम बढ़ जाएँ

Continue readingमिट्टी में मिट्टी होने के सिवाय – ओम नागर

मुल्तान की औरतें – हरभगवान  चावला

Post Views: 150 हरभगवान  चावला की कविताएं मुल्तान की औरतें अस्सी पार की ये औरतें जो चलते हुए कांपती हैं लडख़ड़ाती हैं या लाठी के सहारे कदम बढ़ाती हैं धीरे-धीरे

Continue readingमुल्तान की औरतें – हरभगवान  चावला