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कविताJune 2, 2022

मैं सूं गरीब भील का बेटा, कर लिए कुछ ख्याल मेरा,क्यूं मेरा गुंट्ठा मांगै सै मनै, के करया नुकस्यान तेरा। धनुष विद्या की चाहना थी, मन मैं था सरूर गुरु

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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कर्मचंद केसर हरियाणा राज्य के कैथल जिले में रहते हैं। केसर की गज़लें पाठक का हरियाणवी समाज से सीधा संबंध स्थापित कराती हैं। प्रस्तुत है उनकी दो गज़लें:

कविताMarch 25, 2020

देस हरियाणा और सत्यशोधक फाउंडेशन द्वारा 14-15 मार्च को कुरुक्षेत्र स्थित सैनी धर्मशाला में आयोजित हरियाणा सृजन उत्सव में दोनों दिन सवाल उठाने और चेतना पैदा करने वाली कविताएं गूंजती रही। देश के जाने-माने वैज्ञानिक एवं शायर गौहर रज़ा के कविता पाठ के लिए विशेष सत्र आयोजित किया गया। सत्र का संचालन रेतपथ के संपादक डॉ. अमित मनोज ने किया।

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ग़ज़लDecember 25, 2018

  कर्मचन्द ‘केसर’  ग़ज़ल सीळी बाळ रात चान्दनी आए याद पिया। चन्दा बिना चकौरी ज्यूँ मैं तड़फू सूँ पिया। तेरी याद की सूल चुभी नींद नहीं आई, करवट बदल-बदल कै

ग़ज़लDecember 5, 2018

हरियाणवी ग़ज़ल जीन्दे जी का मेल जिन्दगी। च्यार दिनां का खेल जिन्दगी। फल लाग्गैं सैं खट्टे-मीठे, बिन पात्यां की बेल जिन्दगी। किसा अनूठा बल्या दीवा, बिन बात्ती बिन तेल जिन्दगी।

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