इरोम शर्मिला का लम्बा अनशन हमें इस बात पर पुनर्विचार के लिए भी मजबूर करता है कि गुलामी के दिनों में महात्मा गाँधी द्वारा अहिंसात्मक आन्दोलन का यह हथियार आजाद भारत में कितना कारगर है ? यह हथियार किस तरह अपना प्रभाव खो चुका है ?
इरोम शर्मिला का लम्बा अनशन हमें इस बात पर पुनर्विचार के लिए भी मजबूर करता है कि गुलामी के दिनों में महात्मा गाँधी द्वारा अहिंसात्मक आन्दोलन का यह हथियार आजाद भारत में कितना कारगर है ? यह हथियार किस तरह अपना प्रभाव खो चुका है ?