ग़ज़ल वो जो हर राह के हर मोड़ पे मिल जाता है,अब के पूछेंगे कि इस शख़्स का क़िस्सा क्या है। मैं वो पत्थर हूँ नहीं जिसको मिला संगतराश,मैंने हर
ग़ज़ल वो जो हर राह के हर मोड़ पे मिल जाता है,अब के पूछेंगे कि इस शख़्स का क़िस्सा क्या है। मैं वो पत्थर हूँ नहीं जिसको मिला संगतराश,मैंने हर
ग़ज़ल क्या ख़बर थी उस को जब मैं निकला अपने रास्ते सेउम्र हो जायेगी मुझको चार दिन के रास्ते से देखते ही रह गये उन को समंदर और बियाबाँसीधे जो
ग़ज़ल नज़र की हद से परे अपना हर क़दम निकलावो आसमान हमारे सफ़र को कम निकला न पूछ कैसे मिली मेरे चाराग़र को निज़ातन पूछ कितने तरद्दुद से मेरा दम
ग़ज़ल मैं घर में हूँ कि सफ़र में, हैं बेक़रार बहुत तलाश में हैं, परेशां हैं, पहरेदार बहुत अब ऐसे जलसों का चल निकला है रिवाज़ यहाँ कि सुनने वाले
ग़ज़ल ज़र्रों को आसमान की जानिब रवाँ करूंयानी फिर इनकलाब की तैयारियां करूं मौजों का साथ मिलने का इमकां है किस कदरकश्ती को बहर-बहर अगर मैं रवां करूं घर की
ग़ज़ल रात का वक़्त है संभल के चलो ख़ुद से आगे ज़रा निकल के चलो रास्ते पर जमी हुई है बर्फ़ अपने पैरों पै आग मल के चलो राह मक़्तल