जब तलातुम से हमें मौजें पुकारें आगे।क्यों न हम ख़ुद को ज़रा उबारें आगे।। शहरे हस्ती में तो हम औरों…
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ये मैंने माना कुछ उसने कहा है – आबिद आलमी
ग़ज़ल ये मैंने माना कुछ उसने कहा है, लेकिन क्या !हमारा हाल सब उसको पता है, लेकिन क्या! मेरी सलीब…
बस्ती के हर कोने से जब लोग उन्हें ललकारेंगे – आबिद आलमी
ग़ज़ल बस्ती के हर कोने से जब लोग उन्हें ललकारेंगेआवाज़ों के घेरे में वो कैसे वक्त गुज़ारेंगे। आख़िर कब तक…
रात का दश्त है जलता है तो जल जाने दो- आबिद आलमी
रात का दश्त है जलता है तो जल जाने दोयूँ भी यह राह से टलता है तो टल जाने दो…