संस्मरण सत्तर के दशक की शुरुआत में लिखे दो-तीन निबंधों से ही मार्क्सवादी आलोचना में ओम प्रकाश ग्रेवाल की स्पष्ट पहचान बन गई थी और मित्रों-सहकर्मियों के साथ-साथ विरोधियों ने
संस्मरण सत्तर के दशक की शुरुआत में लिखे दो-तीन निबंधों से ही मार्क्सवादी आलोचना में ओम प्रकाश ग्रेवाल की स्पष्ट पहचान बन गई थी और मित्रों-सहकर्मियों के साथ-साथ विरोधियों ने
संस्मरण सत्तर के दशक की शुरुआत में लिखे दो-तीन निबंधों से ही मार्क्सवादी आलोचना में ओम प्रकाश ग्रेवाल की स्पष्ट पहचान बन गई थी और मित्रों-सहकर्मियों के साथ-साथ विरोधियों ने
संस्मरण मेरे दोस्तो में सभी उम्रों के लोग हैं-कई मेरे हम उम्र, कई उम्र में मुझसे बड़े, तो कई उम्र में मुझसे छोटे। ओम प्रकाश ग्रेवाल मुझसे पांच साल
गजानन माधव मुक्तिबोध का नाम पिछले दशकों में शिद्दत से उभरा है। यह क्योंकर हुआ कि जिस कवि का अपने जीवन काल में एक संकलन भी प्रकाशित न हो पाया