वर्ण व्यवस्था का अंत कर देना, जिसके कारण समाज ऊँच और नीच जातियों में बाँटा गया है। ब्राह्मण हमें अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है। वह खुद आरामदायक जीवन जी रहा है। तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है। मैं आपको सावधान करता हूँ कि उनका विश्वास मत करो।
काँशीराम : दलित आक्रोश का रचनात्मक उपयोग
सन् 1980 में उन्होंने ‘अम्बेडकर मेला’ नाम से पद यात्रा शुरू की। इसमें अम्बेडकर के जीवन और उनके विचारों को चित्रों और कहानी के माध्यम से दर्शाया गया। इसके पश्चात काँशीराम ने अपना प्रसार तंत्र और भी मजबूत किया और जाति-प्रथा के संबंध में अम्बेडकर के विचारों का लोगों के बीच सुनियोजित ढंग से प्रचार किया।
एम.एस.स्वामीनाथन : हरित क्रान्ति के जनक
डॉ. स्वामीनाथन के नेतृत्व में कृषि के क्षेत्र में क्रान्तिकारी अनुसंधान से भारत अनाज के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना। इंदिरा गाँधी ने इन पर एक डाक टिकट भी जारी किया। उन्हें अप्रैल 1979 में योजना आयोग का सदस्य बनाया गया। 1982 तक वे योजना आयोग में रहे। उनके कार्यों को हर जगह सराहा गया।
ईएमएस नंबूदिरीपाद : दुनिया की पहली चुनी हुई कम्युनिस्ट सरकार के मुख्यमंत्री
ईएमएस ने जोर दे कर कहा था कि जातिगत शोषण ने केरल की नंबूदिरी जैसी शीर्ष ब्राह्मण जाति तक का अमानवीयकरण कर दिया है। उन्होंने ‘नंबूदिरी को इंसान बनाओ’ का नारा देते हुए ब्राह्मण समुदाय के लोकतंत्रीकरण की मुहिम चलाई। यह तथ्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे खुद इसी जाति से आते थे।
इला रमेश भट्ट : ‘सेवा’ से दूसरी आजादी तक
रोजमर्रा के जीवन में कितनी ही बार हमारा सामना ऐसी महिलाओं से होता है, जो घरों में झाड़ू-पोंछा करके या फुटपाथ पर सब्जियाँ बेचते हुए अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करती हैं। हम इतने व्यस्त होते हैं कि इनके चेहरे पर उम्र से पहले ही खिंच आईं प्रौढ़ता की लकीरों के पीछे छिपे दर्द को महसूस नहीं कर पाते। लेकिन अहमदाबाद की इला रमेश भट्ट ने स्वरोजगार से जुड़ी महिलाओं के इस दर्द को समझा।
इला मित्र : तेभागा की रानी माँ
देश विभाजन के बाद 1948 में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति पाकिस्तान सरकार के सख्त रवैये के कारण वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी ने भूमिगत होकर कार्य करने का निर्णय लिया। इला मित्र सहित सभी नेताओं को भूमिगत हो जाने को कहा गया। इला मित्र उन दिनों गर्भवती थीं। वे छिपकर बार्डर पार करके कलकत्ता आ गईं और यहाँ अपने बेटे मोहन को जन्म दिया। इसके बाद उन्होंने अपने बेटे को अपनी सास के पास रामचंद्रपुर में छोड़ा और तीन-चार सप्ताह बाद फिर से अपने पति के साथ नचोल किसान आन्दोलन में शामिल हो गईं।
इंदिरा गाँधी : अटल की ‘दुर्गा’
सिफ़ारिश की गई थी कि सभी सिख सुरक्षाकर्मियों को उनके निवास स्थान से हटा लिया जाए। लेकिन जब वह फ़ाइल इंदिरा गाँधी के सामने रखी गई तो उन्होंने उसे अस्वीकार करते हुए बहुत ग़ुस्से में उस पर लिखा था, “आर नॉट वी सेकुलर?
अनुपम मिश्र : हमारे समय का अनुपम आदमी – डॉ. अमरनाथ
अपनी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” में श्री अनुपम मिश्र ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है। भारत की यह पारम्परिक जल संरचनाएं, आज भी हजारों गाँवों और कस्बों के लिये जीवनरेखा के समान हैं।
अनिल सद्गोपाल : सबको शिक्षा एक समान – डॉ. अमरनाथ
‘शिक्षा में बदलाव का सवाल’, ‘बदलाव की राजनीति और संघर्ष का दर्शन’, ‘सरकारी शैक्षिक समितियाँ- आयोग : लोकतांत्रिक सलाह –मशविरे का ढोंग’, ‘पोलिटिकल इकोनामी ऑफ एजूकेशन इन द एज ऑफ ग्लोबलाइजेशन : डी-मिस्टीफाइंग द नॉलेज एजेंडा’ आदि उनकी लगभग एक दर्जन पुस्तिकाएं प्रकाशित हैं।
गाँधी जी की राष्ट्रभाषा ‘हिन्दुस्तानी’ का क्या हुआ? – अमरनाथ
वैसे भी हिन्दुस्तानी कहने से जिस तरह व्यापक राष्ट्रीयता और सामाजिक समरता का बोध होता है उस तरह हिन्दी कहने से नहीं. जैसे पंजाबियों की पंजाबी, मराठियों की मराठी, बंगालियों की बंगाली, तमिलों की तमिल, गुजरातियों की गुजराती का बोध होता है उसी तरह हिन्दुस्तानी कहने से हिन्दुस्तानियों की हिन्दुस्तानी का बोध होता है. (लेख से)