Post Views: 50 एक दिन सहसासूरज निकलाअरे क्षितिज पर नहीं,नगर के चौक :धूप बरसी पर अन्तरिक्ष से नहीं,फटी मिट्टी से। छायाएं मानव-जन कीदिशाहीन सब ओर पड़ीं – वह सूरजनहीं उगा…
हमारा देश- अज्ञेय
Post Views: 17 इन्हीं तृण-फूस छप्पर से ढके ढुलमुल गवारू झोंपड़ों में ही हमारा देश बसता है। इन्हीं के ढोल-मादल बाँसुरी के . उमगते सुर में हमारी साधना का रस…
सौंदर्य बोध और शिवत्व बोध – अज्ञेय
अज्ञेय हिंदी साहित्य में एक कवि, लेखक तथा निबन्धकार के रूप में जाने जाते हैं. अज्ञेय अपनी रचनाओं में व्यक्तिस्वतंत्रता के पक्षधर थे. उनका मानना था कि मनुष्य समाज में रहते हुए पूर्ण रूप से स्वतंत्र है. ‘सौंदर्य बोध और शिवत्व बोध’ नामक अपने इस निबन्ध में उन्होंने कला में सौदर्य तत्व तथा शिवत्व यानि मंगलकारी होने के भाव को भिन्न भिन्न माना है जबकि ‘संस्कृति और सौन्दर्य’ नामक अपने निबन्ध में नामवर सिंह शिवत्व- बोध सहित रचना को ही सुंदर कहते हैं. विद्यार्थियों के लिए यह शोध का विषय हो सकता है.
अज्ञेय की कविता में विभाजन की त्रासदी – डा. सुभाष चन्द्र,
अज्ञेय बार बार आगाह करते हैं साम्प्रदायिकता के सांप से बचने की। वे जनता से आह्वान करते हैं, बार बार चेताते हैं कि जिसे हम अपना कहते हैं वह ही हमें डस लेगा। साम्प्रदायिकता चाहे हिन्दू हो या फिर मुस्लिम दोनों का चरित्र एक ही होता है और दोनों परस्पर दुश्मन नहीं बल्कि पूरक होती हैं और एक-दूसरे को फूलने फलने के लिए खुराक उपलब्ध करवाती हैं। साम्प्रदायिकता मनुष्य की इंसानियत को ढंक लेती है। अज्ञेय बार बार मनुष्य की इंसानियत को जगाने की बात करते हैं।