साक्षात्कार

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किताबों में देखी तसवीर से रत्तीभर भी अंतर नहीं। वैसा ही सौम्य चेहरा, 80 वर्ष की हो जाने के कारण चेहरे पर झुर्रियां, उनमें झलकती एक युग की वेदना, चेहरे

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विजय बहादुर सिंह ने बाबा से यह बातचीत साल 1971 में की थी। बतौर रचनाकार बाबा नागार्जुन ने इस संवाद में लेखकीय राजनैतिक दायित्त्वों, शिल्प निर्माण, लेखक के साथ जुड़े

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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अशोक बैरागी : अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के विषय में कुछ बताइए? डॉ. अशोक भाटिया : मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि 1947 के भारत-पाक विभाजन की त्रासदी से जुड़ी है। मेरे पिता जी

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योगेश – आपकी कविताएँ शानदार हैं। इतनी बढ़िया कविताएँ एक अरसे बाद पढ़ी हैं। आपकी कविताओं के सम्बन्ध में मेरी कुछ जिज्ञासाएं हैं। सपना भट्ट– आपको कविताएँ भली लगीं यह

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आचार्य डॉ राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी जी पीएच.डी, डी.लिट. देशभर में लोकजीवन, लोकवार्ता और मिथकशास्त्र के गिने चुने विद्वानों में से एक हैं। उनका डॉक्टरेट ’मार्क्सवाद और रांगेय राघव’ विषय पर

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