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आओ नया समाज बनाएं – राजेंद्र चौधरी

बुनियादी एवं व्यापक बदलाव के लिए अंतत आम जन का, सत्ता से वंचित तबकों का संगठित होना ज़रूरी है. केवल एक पार्टी या नेता के पक्ष में वोट डालने के लिए नहीं अपितु बहुसंख्यक आबादी के हक़ में देश को चलाने के लिए. ज़रूरत इस बात कि है कि पूरा समय शासन व्यवस्था की नकेल प्रभावी रूप से जनता के हाथ में रहे. पॉँच साल में एक बार नहीं अपितु पूरे पॉँच साल लगातार शासन करने वालों में जनता के प्रति जवाबदेही का भाव रहे और जनता की सत्ता में बैठे लोगों पर कड़ी निगाह रहे.

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मोरनी हिल्ज़ः नरबलि और उसके बाद – सुरेंद्र पाल सिंह

Post Views: 454 हरियाणा के एकमात्र हिल स्टेशन मोरनी हिल्ज़ की खूबसूरत वादियों में हरी भरी पहाड़ियाँ, एक पुराना क़िला, घग्गर नदी का उतरता चढ़ता हुआ बहाव, पानी का एक…

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बुद्धिवाद : पाखंड व अन्धविश्वास से मुक्ति का मार्ग – पेरियार

जो सुना जाता है; जो लिखा गया है; जो लम्बे समय से होता आ रहा है; जो बहुतों के द्वारा माना जाता है या जो ईश्वर के द्वारा कहा गया है; उस पर विवेकशील लोगों को तुरन्त ही विश्वास नहीं करना चाहिए। जो कुछ भी हमें आश्चर्यजनक लगता है, उसे तुरन्त ही दिव्य या चमत्कारी नहीं मान लेना चाहिए। हर परिस्थिति में हमें स्वतंत्र रूप से तर्कसंगत और निष्पक्ष रूप से सोचने के लिए तैयार रहना चाहिए।

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समय पर काम करने की आदत डालें – माधवराव स्प्रे

यह लेख पण्डित माधवराव स्प्रे की पुस्तक “जीवन संग्राम में विजय प्राप्ति के लिए कुछ उपाय” से लिया गया है। इस लेख में वे हम सभी को समय पर कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं। उम्मीद है यह लेख आपके लिए उपयोगी होगा।

चिंता का सबब – पिछले साल की तुलना में हिमाचल में तेजी से घटा है हिम आच्छादित क्षेत्र – गगनदीप सिंह

अगर इसी तरह से बड़े बांध, जल विद्युत परियोजनाएं और कारखानों का विस्तार हिमाचल में होता रहा तो वह दिन दूर नहीं है जब यहां पर भी मैदानों की तरह धरती तपने लगेगी और इस से मौसम परिवर्तन से यहां की कृषि-बागवानी भी बरबाद हो जाएगी।

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सुकेत रियासत के राजा के सामंती शोषण के खिलाफ लड़ने वाले दो क्रांतिकारी विद्रोही जिनको भूल चुकी है सरकार –

राजा के शोषण अत्याचार से तंग आकर सुकेत रियासत की जनता ने 1948 में सुकेत विद्रोह का बिगुल फूंका था। इस में भाग लेने वाले क्रान्तिकारी तांती राम सुपुत्र आल्मु राम और न्हारू राम सुपुत्र अछरु राम का जन्म भनेरा नामक गांव में हुआ था।

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पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ- नामवर सिंह

इन पोथियों का मूल्य उन पर लिखी कीमत में नहीं, दुकानदार की आँखों में नहीं, मेरी डिग्रियों में नहीं, अध्यापक के वेतन में नहीं। उस कोटि-कोटि जनता के हृदय में है, उसकी आँखों में है, उसके हाथों में है। (लेख से )

भारत माता -एक विमर्श – सुरेन्द्रपाल सिंह

Post Views: 53 ‘भारत माता की जय’ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान सबसे अधिक लगाए जाने वाला नारा था। भारत माता का उल्लेख सबसे पहले किरणचन्द्र बंदोपाध्याय के नाटक में…

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बाज़ारवाद का नीतिगत विरोध नाकाफी, निजी जीवन में भी ज़रूरी-राजेन्द्र चौधरी

लेखक महर्षि दयानंद विश्विद्यालय, रोहतक के पूर्व प्रोफेसर तथा कुदरती खेती अभियान, हरियाणा के सलाहकार हैं.

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गाँव एक गुरुद्वारे दो – सुरेंद्र पाल सिंह

बात सामान्य सी है लेकिन सामान्य लगने वाली बातों के हम इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि असामान्य बातें आँखों से ओझल होनी शुरू हो जाती हैं। हिंदू मन्दिर तो सदियों से केवल द्विजों के लिए ही शास्त्रसम्मत विधान से बनते रहे हैं लेकिन कोई गुरुद्वारा जब समुदाय के आधार पर बने तो सवालिया निशान लगना वाजिब है। मगर जब कोई बात आम हो जाए तो खास नहीं लगती। फिर भी आम के पीछे छुपे हुए खास को देखना आवश्यक है जिससे हमें सामाजिक डायनामिक्स की शांत और सहज दिशा और दशा का भान होता है।