रविदास की मानव मुक्ति में न पौराणिक स्वर्गारोहण है और न ही किसी अदृश्य लोक में बैकुण्ठ वास। इस मुक्ति में कोई दुरूह ब्रह्म विद्या ज्ञान भी नहीं है। वे अपनी वाणी में अपने परिवेश की समस्याओं का आत्मनिष्ठरूप प्रतिपादित करते हुए व्यक्ति को एक उच्चभावपूर्ण स्थिति में ले जाना चाहते हैं जिसमें उसके समस्त बन्धनों का अस्तित्व बना नहीं रह सकता। (लेख से)
प्रतिभा और आरक्षण – रजनी दिसोदिया
आजकल आरक्षण विरोध का जो मुद्दा गरमाया है उसमें भी बड़ा कंफ्यूजन है। क्या यह पूरी आरक्षण व्यवस्था का विरोध है या अन्य पिछड़ा वर्ग के 27% आरक्षण का विरोध है या यह पिछले सत्तर वर्षों से भीतर ही भीतर सुलगती उस खुन्नस का विस्फोट है जिसे इस ओ.बी.सी. आरक्षण ने और हवा दे दी है।
जाति-व्यवस्था का क्षय हो – ई. वी. रामासामी पेरियार
उच्च जाति के धूर्त व्यक्तियों ने अत्यन्त धूर्ततापूर्वक जाति और धर्म को आपस में जोड़ दिया; ताकि उनको अलग करना मुश्किल हो जाए। इसलिए, जब आप जाति को नष्ट करने का प्रयास करते हैं, तो आपको यह डर नहीं लगना चाहिए कि धर्म भी नष्ट हो जाएगा।
ब्राह्मणों को आरक्षण से घृणा क्यों ? – पेरियार
पाठकों के समक्ष पेरियार के आरक्षण संबंधी विचारों को उद्घाटित करता उनका महत्वपूर्ण लेख।
जाति के बारे में – ई. वी. रामासामी पेरियार
भारत में जाति-व्यवस्था को मिथ्या और कोरी कल्पना साबित करता पेरियार का यह लेख।
जाति व्यवस्था – पेरियार
ऐसे सूत्रों ने यह भी कहा कि हमारे देश में अनेक महत्त्वपूर्ण जातियाँ ऐसे ही आपसी मेलजोल से सामने आईं। उच्च जाति के लोग पथभ्रष्ट हुए इस और अपने नैतिक मानकों से डिगे, तो इसके परिणामस्वरूप पंचम जाति यानी सबसे पिछड़ी जाति अस्तित्व में आई ।
पति-पत्नी नहीं, बनें एक-दूसरे के साथी – पेरियार
मैं ‘विवाह’ या ‘शादी’ जैसे शब्दों से सहमत नहीं हूँ। मैं इसे केवल जीवन में साहचर्य के लिए एक अनुबन्ध मानता हूँ । इस तरह के अनुबन्ध में मात्र एक वचन; और यदि आवश्यकता हो, तो अनुबन्ध के पंजीकरण के एक प्रमाण की जरूरत है। अन्य रस्मों-रिवाजों की कहाँ आवश्यकता है? इस लिहाज से मानसिक श्रम, समय, पैसे, उत्साह और ऊर्जा की बर्बादी क्यों?
महिलाओं के अधिकार – पेरियार
पुरुष के लिए एक महिला उसकी रसोइया, उसके घर की नौकरानी, उसके परिवार या वंश को आगे बढ़ाने के लिए प्रजनन का साधन है और उसके सौन्दर्यबोध को सन्तुष्ट करने के लिए एक सुन्दर ढंग से सजी गुड़िया है। पता कीजिए, क्या इनके अलावा उनका उपयोग अन्य कार्यों के लिए भी हुआ है ?
जाति और वर्ण इतिहास पर पर्दा क्यों ? – रजनी दिसोदिया
भारत की सामाजिक व्यवस्था को समझने के लिए उपयोगी लेख है। जाति का उद्भव कैसे हुआ और जाति के निर्माण का आधार क्या है? इस मुद्दे पर भी लेखिक ने विस्तारपूर्वक विचार किया है।
पेरियार ई.वी.रामासामी : उसूलों पर अडिग महातार्किक – अमरनाथ
वर्ण व्यवस्था का अंत कर देना, जिसके कारण समाज ऊँच और नीच जातियों में बाँटा गया है। ब्राह्मण हमें अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है। वह खुद आरामदायक जीवन जी रहा है। तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है। मैं आपको सावधान करता हूँ कि उनका विश्वास मत करो।