कविता तुम्हें पूरा हक है खुद के खिलाफ युद्ध छेड़ देने का दरख्तों की हत्या करने का। कटे हुए इन दरख्त की चीखें अमानत होंगी तुम्हारे भविष्य की। यह तमाम
कविता तुम्हें पूरा हक है खुद के खिलाफ युद्ध छेड़ देने का दरख्तों की हत्या करने का। कटे हुए इन दरख्त की चीखें अमानत होंगी तुम्हारे भविष्य की। यह तमाम
मैथ्यू आर्नल्ड (1822-1888) अनुवाद दिनेश दधीचि अपनी सँकरी शय्या में लेटो घुस कर अब जाओ, कुछ मत और कहो . व्यर्थ रहा आक्रमण तुम्हारा, सब पहले जैसा है आखिर तुम्हें
कविता वो बचपन के दिन कड़ै गए, वो छूटे साथी कड़ै गए, मैं ढूंढू उनको गळी-गळी वो यारे प्यारे कड़ै गए। वो खुडिया-डंडा, वो लुका छिपी वो तीज और गुग्गा
रॉबर्ट ब्राउनिंग हैमिल्टन (1812-1889) अनुवाद – दिनेश दधीचि एक मील मैं चला एक मील मैं चला ख़ुशी संग वो बतियाती रही राह भर। कितना कुछ बतलाया उसने सीख न पाया
कविता मस्तिष्क के किसी कोने में चिपके हैं कई प्रश्रचिन्ह और मैं उदास हूं भीड़ के पास हूं जो निरी तेज दर्द में लिपटी हुई रक्त के धब्बों से गले
कविता मजदूर हाट पर खड़ा मांस का जिन्स ठेकेदार आंखों में तराजू लिए इस मांस का वजन लेता है और कीमत लगाता है एक दिन की उस दिन वह मांस