गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ
Post Views: 37 गोलेंद्र पटेल की ये कविताएँ किसानी चेतना से ओत प्रोत हैं। यह जमींदार वाली भारी भरकम किसानी के बरक्स हाशिए पर सिमटे एक दलित और मजदूर की
Post Views: 37 गोलेंद्र पटेल की ये कविताएँ किसानी चेतना से ओत प्रोत हैं। यह जमींदार वाली भारी भरकम किसानी के बरक्स हाशिए पर सिमटे एक दलित और मजदूर की
Post Views: 40 जयपाल की कविता आडम्बर से कोसों दूर है। उनकी कविता में हाशिए पर धकेले गए लोग बराबर उपस्थित रहते हैं। स्त्री अस्मिता की ये कविताएँ महज सहानुभूति
Post Views: 122 तनुज के लिए कविता देश की मौजूदा आबो हवा से भिड़ने का जरिया है। कविता ही में अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं, कविता ही में वे अपने
Post Views: 252 हरियाणा की वर्तमान हिंदी कविता में कपिल भारद्वाज निरन्तर संवादरत हैं। भारद्वाज की इन कविताओं में दिनों दिन घटती जाती संवेदना के बरक्स व्यापक आदमियत का गहरा
Post Views: 24 1. किताब सबतै बढिया आपणा दोस्त किताब नै कहवै पत्नी साथ छोड दे या पास हर दम रहवै भाषा, लिपि का पूर्ण ज्ञान करवावै सै समाज की
Post Views: 29 1. होटल में चिपका बाल एक बाल ही था वह होटल के उस कमरे में बाथरूम की दीवार पर चिपका हुआ इतनी ऊंचाई पर भी नहीं कि
Post Views: 89 योगेश शर्मा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के हिंदी विभाग में शोधार्थी हैं। आधुनिक हिंदी कविता को भाषा बोध और दर्शन के परिप्रेक्ष्य में देखने समझने में रूचि है।
Post Views: 244 विनोद कुमार ने हाल ही में हिंदी साहित्य में अपना एम.ए. पूरा किया है। दलित साहित्य के पठन – लेखन में विशेष रूचि है। जाति व्यवस्था के
Post Views: 56 रीढ़ “सर मुझे पहचाना क्या?” बारिश में कोई आ गया कपड़े थे मुचड़े हुए और बाल सब भीगे हुए पल को बैठा, फिर हँसा और बोला ऊपर
Post Views: 44 मैं ही अवाम – जनसैलाब मैं ही हुजूम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा1 क्या आपको मालूम है कि दुनिया के श्रेष्ठ काम मेरे द्वारा हुए हैं? मैं ही मज़दूर , मैं
Continue readingमैं ही अवाम, जनसमूह – कार्ल सैंडबर्ग, अनुवाद- दीपक वोहरा