Category: आलोचना

ब्रेख्तः नाटक के अंत पर नहीं, प्रक्रिया पर ध्यान रहे – मीत

Post Views: 348 विश्व साहित्य बर्टाेल्ट ब्रेख्त (बर्टाेल्ट आयगन फ्रीडरिक ब्रेख्त) नि:संदेह 20वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण लेखकों में से एक हैं। नाटक के क्षेत्र में उनका प्रभाव वैसा ही

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गोदान के होरी का समसामयिक संदर्भ – आदित्य आंगिरस

Post Views: 1,130 आलोचना गोदान प्रेमचंद का एक ऐसा उपन्यास है जिसमें उनकी कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची है। गोदान में भारतीय किसान का संपूर्ण जीवन – उसकी आकांक्षा और

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ईंट भट्ठा उद्योग : महिलाओं का जीवन एवं बाल श्रम – मुकेश कुमार

Post Views: 1,209 आलेख                 अगर आंकड़ों की नजर से देखें तो 1991 से लागू उदारीकरण, वैश्वीकरण व नीजिकरण की नीतियों के चलते भारत के सकल घरेलू उत्पादन में वृद्धि

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देश का चेहरा धर्मनिरपेक्ष रहना चाहिए – कृष्णा सोबती

Post Views: 289  (प्रख्यात कथा लेखिका कृष्णा सोबती को वर्ष 2017 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।  प्रस्तुत है आज की देश की सबसे ज्वलंत समस्या पर उनकी

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साहित्य का स्व-भाव और राजसत्ता – बजरंग बिहारी तिवारी

Post Views: 744 भारतीय मानस धर्मप्राण है इसलिए भारतीय साहित्य अपने स्वभाव में अध्यात्मवादी, रहस्यवादी है; यह धारणा औपनिवेशिक दौर में बनी। राजनीति में साहित्य की दिलचस्पी आधुनिक काल में

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तरक्कीपसंद शायर आबिद आलमी की ग़ज़लगोई – ज्ञान प्रकाश विवेक

Post Views: 839 देश का विभाजन एक न भूलने वाली घटना थी। यह एक ऐसी त्रासदी थी, जिसने भूगोल ही नहीं, अवाम को भी तकसीम करके रख दिया। जो उधर

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बौद्धिक साहस और कल्पना की उदात्त तीव्रता का स्वर आबिद आलमी – – डा. ओमप्रकाश ग्रेवाल व दिनेश दधिची

Post Views: 619  आबिद आलमी के ग़ज़ल-संग्रह ‘नये ज़ाविए’ का मुख्य स्वर सीधी टकराहट का, जोखिम उठाने का है। आबिद आलमी के लिए सृजनात्मकता की यह एक अनिवार्य शर्त है

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आबिद आलमी की कुछ यादें – महावीर शर्मा

सुना कर अपनी अपनी जाने वालों
सुनो मेरा तो किस्सा रह रहा है। … Continue readingआबिद आलमी की कुछ यादें – महावीर शर्मा

चसवाल साहेब यानी आबिद आलमी सिद्धांत के आदमी थे – शशिकांत श्रीवास्तव

अत्यंत धीर, गम्भीर चसवाल साहेब सिद्धांतों के आदमी थे, बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि वह सिद्धांतों के नहीं, बल्कि एक ही सिद्धांत के आदमी थे। उसी सिद्धांत ने उनकी तमाम शायरी को प्रेरित किया और वह उनकी सभी गतिविधियों के पीछे दिखाई देता था। चसवाल साहेब किसी भी शक्ल में किसी का भी, कहीं भी कोई शोषण नहीं सह पाते थे और उसके विरुद्ध आवाज उठाना वह अपना पहला इन्सानी फर्ज समझते थे।
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लोक-रंग की आंच में पकाया हबीब ने अपना रंग-लोक -डा. सुभाष चंद्र

Post Views: 1,033 लोक-रंग की आंच में पकाया हबीब ने अपना रंग-लोक सुभाष चंद्र रंगमंच की दुनिया में हबीब तनवीर एक ऐसा नाम है जो पिछले साठ साल से कलाकारों

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