हरियाणवी कविता जद ताती-ताती लू चालैं नासां तैं चाली नकसीर ओबरे म्हं जा शरण लेंदे सिरहानै धरा कोरा घड़ा ल्हासी-राबड़ी…
Author: विपिन चौधरी
डाब के खेत – विपिन चौधरी
हरियाणवी कविता डाब कै म्हारे खेतां म्हं मूंग, मोठ लहरावे सै काचर, सिरटे और मतीरे धापली कै मन भावै सै…
मेरा सादा गाम – विपिन चौधरी
हरियाणवी कविता म्हारी बुग्गी गाड्डी के पहिये लोहे के सैं जमां चपटे बिना हवा के जूए कै सेतीं जुड़ रहे…
टूम ठेकरी – विपिन चौधरी
हरियाणवी कविता जी करै सै आज दादी की तिजोरी मैं तै काढ़ ल्याऊं सिर की सार,धूमर अर डांडे नाक की…