प्रोफेसर सुभाष सैनी

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गीता प्रैस गोरखपुर की पुस्तकें बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों के स्टाल पर बिकती हुई मिल जायेंगीं। इन पुस्तकों की दो विशेषताएं हैं एक तो ये इतनी सस्ती हैं कि

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आजादी प्राप्त करने के बाद भी किसान की हालत बहुत नहीं बदली। अंग्रेजी साम्राज्यवादी शासन किसानों के अनाज को खलिहान से उठा ले जाता था, लेकिन आज की शोषक नीतियां फसल पकने से पहले ही खाद-तेल-दवाई-बीज के माधयम से पहले ही लूट लेती हैं। किसान के श्रम का शोषण ही है, जिसके कारण उसकी ऐसी दयनीय हालत है, वरन् वह न तो कामचोरी करता है और न ही फिजूलखर्ची।(लेख से )

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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पुरानी होने से ही न तो सभी वस्तुएँ अच्छी होती हैं और न नयी होने से बुरी तथा हेय।विवेकशील व्यक्ति अपनी बुद्धि से परीक्षा करके श्रेष्ठकर वस्तु को अंगीकार कर लेते हैं और मूर्ख लोग दूसरों द्वारा बताने पर ग्राह्य अथवा अग्राह्य का निर्णय करते हैं।

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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विडियोAugust 8, 2020

हरियाणा सृजन उत्सव 2020 में 15 मार्च को कवि सम्मेलन में अमित मनोज,हरभगवान चावला,विरेंद्र भाटिया,सुरजीत सिरड़ी,जयपाल, कर्मचंद केसर,अरुण कैहरबा, एस एस पंवार, योगेश कुमार ने कविता पाठ किया।

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अपने समाज व परिवेश से कटकर ना अतीत को समझ सकते, ना धर्म को. भावुकतापूर्ण दृष्टि विहीन अध्ययन किसी काम का नहीं. इतिहास बोध को स्थापित करती कहानी.

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

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