वक्ता और सरोता की जिब एक्के भास्सा सै – मंगतराम शास्त्री

हरियाणवी ग़ज़ल

सिपाही के मन की बात – मंगतराम शास्त्री

कान खोल कै सुणल्यो लोग्गो कहरया दर्द सिपाही का। लोग करैं बदनाम पुलिस का धन्धा लूट कमाई का।। सारी हाणां…

सै दरकार सियासत की इब फैंको गरम गरम – मंगतराम शास्त्री

मंगतराम शास्त्री हरियाणा के समसामयिक विषयों पर रागनी लिखते हैं. यथार्थपरकता उनकी विशेषता है.

सामण का स्वागत – मंगतराम शास्त्री

शीळी शीळी बाळ जिब पहाड़ां म्ह तै आण लगै होवैं रूंगटे खड़े गात के भीतरला करणाण लगै राम राचज्या रूई…