नाक अभी बाकी है -मदन भारती

कविता बाहुबली हर बार दिखाते हैं अपनी ताकत बताते हैं अपने मंसूबे बेकसूरों की गर्दनों पर उछल कूद करके हर…

नाक नहीं कटती -मदन भारती

कविता बस्तियां जलातें हैं घर में कुकृत्य कर लेते हैं देवर का हक चलता है, जेठ तकता है, ससुर रौंदता…

न्याय का रूप -मदन भारती

कविता बस! मजूरी मांगने की हिमाकत की थी उसने। एक एक कर सामान फैंका गया बाहर! नन्हें हाथों के खिलौने,…

चुप्पी और सन्नाटा -मदन भारती

कविता हम आगे जा रहे हैं या पीछे या फिर जंगल आज भी हमारा पीछा कर रहा है आधुनिकता के…