कमलानंद झा

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मेरे बिहार (वैसे लगभग पूरे देश में) में मूल्यांकन के संदर्भ में एक फिकरा अत्यंत प्रसि़द्ध है कि एक साल की पढा़ई तीन घंटे की लिखाई और तीन मिनट की

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सिनेमा                 पहाड़ पुरुष दशरथ मांझी के व्यक्तित्व ने एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि ज्ञान, बुद्धिमत्ता और गहन संवेदनशीलता सिर्फ औपचरिक शिक्षा की मोहताज नहीं। अक्षर की

देसहरियाणा सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मंच

पठनीय पुस्तक दलित साहित्य के लिए यह शुभ संकेत है कि अब हिंदी में भी लगातार आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित हो रहीं हैं। रचना के साथ-साथ आलोचना का यह तादात्मय दलित

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