न घर में चैन है उसको न ही गली में है-आबिद आलमी

न घर में चैन है उसको न ही गली में है,मेरे ख़याल से वो शख्स ज़िन्दगी में है। खटक रहा…

घरौंदे नज़रे-आतिश और ज़ख्मी – आबिद आलमी

घरौंदे नज़रे-आतिश और ज़ख्मी जिस्मो-जां कब तकबनाओगे इन्हें अख़बार की यों सुर्खियाँ कब तक यूँ ही तरसेंगी बाशिंदों की खूनी…

जब कहा मैंने कुछ हिसाब तो दे -आबिद आलमी

ग़ज़ल जब कहा मैंने कुछ हिसाब तो दे।क्यों फ़रिश्तों की झुक गई आँखें।। इतने ख़ामोश क्यों हैं शहर के लोग।कुछ…

जब तलातुम से हमें मौजें पुकारें आगे -आबिद आलमी

जब तलातुम से हमें मौजें पुकारें आगे।क्यों न हम ख़ुद को ज़रा उबारें आगे।। शहरे हस्ती में तो हम औरों…