चौधरी छोटू राम, अनुवाद-हरि सिंह
चौधरी छोटू राम खुद वकील होने के नाते ब्रिटिश न्याय प्रणाली को भली-भांति समझते थे। बटलर ने मित्रता के नाते इस विषय में जो कुछ पूछा, उसका साफ-साफ जवाब दे दिया। कोई जी हजूरी नहीं। महात्मा गांधी का भी जिक्र किया जो सत्य को ही परमात्मा मानते थे। मुंशी प्रेम चंद ने अपनी अमर कहानी में पंचायती न्यासय को पंच परमेश्वर कहा। चौधरी छोटू राम ने भी हवाला दिया कि पंचायतों में झूठ नहीं बोली जाती, जबकि कचहरियों में झूठ का बोलबाला है। दरअसल तत्कालीन ब्रिटिश न्याय-प्रणाली पर उनकी यह टिप्पणी काफी हद तक आज के भारत की, सामान्य जनता से कटी न्याय-प्रणाली पर भी लागू होती है, जो काफी हद तक ब्रिटिश विरासत को ही ढोए जा रही है।
ब्रिटिश भारत की न्याय व्यवस्था का विषय अति महत्वपूर्ण है। मुझे खुशी है कि आपने अपने पत्रों में इसे प्रथम स्थान दिया है। इस विषय की पवित्रता भारत में ब्रिटिश राज की सबसे ऊंची धरोहर है। इसका मूल्य महान है। ब्रिटिश न्यायाधीशों ने इस देश में जो न्याय दिया वह सराहनीय है। उनके तरीकों और उनकी भावना की वजह से न्याय प्रणाली की ख्याति बढ़ी। भारत का ब्रिटिश न्याय में विश्वास बढ़ा। पिछले वर्षों तक यह विश्वास बना रहा। भारत में अंग्रेजी राज का यह विश्वास सबसे अधिक शक्तिशाली था। लोग अंग्रेजों के नीचे अपनी गुलामी को भूल गए थे और समझने लगे थे कि अंग्रेज भारत के नागरिकों को राज में सम्मान के साथ बराबर का हिस्सेदार बना देंगे। क्या इसको बहाल करने की कोशिश की जावेंगी?
जैसा कि आपने शुरू में स्पष्ट किया है कि इंडियन क्रिमिनल ला (Criminal Law) लिखित है इसलिए अलिखित या अर्द्ध-लिखित कानून से भिन्न और महत्वपूर्ण है। भारत में जो क्रिमिनल कानून लागू है, वह सिद्धांत और व्यवहार में इंग्लैंड के क्रिमिनल कानून के दोषियों (अभियुक्तों) के प्रति नरम है। यदि बाहरी कारणों व सोच से प्रभावित न हो तो यह कानून विचाराधीन (अंडरट्रायल) कैदी के पक्ष में किसी भी अन्य सभ्य देश के ऐसे कैदी के मुकाबले ज्यादा मददगार है।
परन्तु बहुत से कारणों से क्रिमिनल कानून प्रदूषित होता है, जो अभियुक्तों के पक्ष या विरोध में जाता है। ये कारण हैं – (क) जुर्म की खोज के मामले में जनता पूर्णतः अलग रहती है, (ख) पुलिस में भ्रष्टाचार, (ग) निचले मेजिस्ट्रेटों में भ्रष्टाचार, (घ) नसली विद्वेष, (च) गवाही का असंतोषजनक कानून, (छ) झूठी गवाही। इन कारणों को मैं स्पष्ट करता हूं।
यह कटु सत्य है कि मेरे देशवासी जुर्म की खोज करने और दोषी को सजा दिलाने में कोई रूचि नहीं लेते है। पुलिस अपने तरीकों में आम तौर पर भ्रष्ट होती है, जिसे जनता के रिवाजों, तरीकों और भाषा की जानकारी नहीं।
एक अंग्रेज बैरिस्टर हाईकोर्ट में जज नियुक्त कर दिया जाता है। नतीजा यह होता है कि न्याय का भट्ठा बैठ जाता है। यह गैर कुदरती सिस्टम है। ऐसा जज अपने रीडर पर निर्भर करता है। सारे रिकार्ड के अंग्रेजी में अनुवाद पर भारी खर्चा होता है। न्यासय का कुंडा हो जाता है।
ऊपर लिखित से प्रतीत होता है कि न्याय प्रशासन को बहुतेरे महत्वपूर्ण सुधारों की दरकार है। योग्य और ईमानदार पुलिस दल की जरूरत है। न्यायिक एवं नौकरशाही के कार्यों को तुरंत अलग-अलग किया जाए। गवाही और कानून बहुत सरल हो। प्रक्रिया सरल हो ताकि न्याकिसान, य जल्दी और सस्ता मिल सके। विदेशी जजों को नियुक्त न किया जाए क्योंकि वे भारतीय तरीकों, व्यवहारों और भाषा से अपरिचित होते हैं, जबकि भारतीय जज सस्ते, प्रभारी और प्रभावी तथा मनोभावी होते हैं। ये भारतीय गरिमा, भारतीय बुद्धि, भारतीय ज्ञान और ब्रिटिश राज की नीयत में विश्वास के सवाल हैं।
क्या ब्रिटिश राज-पंडित (Statesmen) ये अति आवश्यक सुधार लागू करने का साहस दिखाकर भारत की जनता की स्थायी कृतज्ञता जीतेंगे?