भारत में संकट पर – चौधरी छोटू राम

चौ. छोटूराम

अनुवाद-हरि सिंह

हार्टकोर्ट बटलर 1914-18 में रोहतक के उपायुक्त रहे। उस दौरान चौधरी छोटूराम एक प्रमुख वकील, जाट गजट उर्दू साप्ताहिक के सम्पादक एवं जिला कांग्रेस कमेटी रोहतक के अध्यक्ष के नाते रोहतक में सक्रिय थे। इस नाते वे बटलर से लंबे संपर्क में रहे और दोनों में परस्पर सम्मानपूर्ण मित्रता का स्वाभाविक भाव भी बना। 20 जून 1923 को बटलर ने लंदन से छोटू राम को पत्र लिखकर चंद ज्वलंत विषयों पर उनके विचार मांगे। छोटू राम द्वारा उत्तर में भेजी गई छह टिप्पणियों को बटलर ने 1924 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘भारत में संकट’ में शामिल किया।

ये टिप्पणियां चौधरी छोटूू राम के वैश्विक दृृष्टिकोण को जानने का सही बैरोमीटररोहतक के उपायुक्त पनपती हैं। टिप्पणियों में भारतीय राष्ट्र की अवधारणा में किसान वर्ग की अनन्य राजनैतिक एवं आर्थिक भूमिका को तो छोटू राम ने जगह-जगह रेखांकित किया ही है, फिरकापरस्ती से लड़ने में भी उन्होंने किसान का स्थान अग्रिम पंक्ति में रखा है। अंग्रेजी साम्राज्य एवं उसकी न्याय व्यवस्था के चरित्र को लगातार कठघरे में रखते   हुए इस किसान नेता ने गांधी और कांग्रेस से अलग अपने राजनैतिक रास्ते की संगतता को भी अपने अंग्रेज मित्र द्वारा मिले इस स्पेस में भली भांति स्पष्ट किया है। अंग्रेजी राज की सामरिक-आर्थिक रणनीति, उसके प्रति  भारतीय जनता का आक्रोश, गांधी के असहयोग आंदोलनों की राजनीतिक-सामाजिक अर्थवत्ता, समाज में धर्म का आधार, शासक का जनता से संबंध, राजनीति के वर्गीय चरित्र इत्यादि विषयों की उनकी विवेचना एक बेहद पैनी नजर रखने वाले राजनीति-विज्ञानी की पकड़ से हमें परिचित कराती है। मसलन-‘फिरकापरस्ती का इलाज जाट एकता से शुरू किया और अब किसान एकता से कर रहा हूं।’

महिलाओं पर उनके विचार गांधी से कई गुना क्रांतिकारी हैं और इस मामले में वे अपने प्रबुद्ध से प्रबुद्ध समकालीनों में किसी से भी पीछे नहीं दिखते। उन्होंने महिलाओं में शैक्षिक ही नहीं, सांगठनिक पहल की अनिवार्यता को भी तत्कालीन किसान समाज के लिए हितकर सिद्ध किया-पर्दाप्रथा को तो स्वास्थ्य की कसौटी पर भी खारिज करने योग्य माना। जिस किसानी समाज के नेतृत्व का श्रेय चौधरी छोटू राम को दिया जाता है, उसके परिप्रेक्ष्य में उनके द्वारा भारतीय महिलाओं के पिछड़ेपन को राष्ट्रीयता के प्रवाह में अवरोध की संज्ञा देना उन्हें अपने समय के ऐसे बड़े राष्ट्र निर्माताओं की पंक्ति में ला खड़ा करता है जो भविष्य के लिए भी उपयोगी बने रह सके हैं।

चौधरी छोटू राम की इन टिप्पणियों से उन्हें जातिवादी या अंग्रेजपरस्त कहने वालों को आंख खोलकर उनका वास्तविक मूल्यांकन करने की समझ भी मिलेगी। ये वास्तव में एक ऐसे कर्मठ देशभक्त राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने अपने समय और अपने समाज की अपनी समझ से प्रेरणा लेने और उस पर अमल करने में किसी के प्रति क्षमा-याचना की जरूरत कभी महसूस नहीं की। चाहे वह भारतीय किसान को राष्ट्रीय राजनीति एवं अर्थ व्यवस्था के केंद्र में रखने का मुद्दा हो, चाहे मुस्लिम लीग और देश विभाजन के विरोध का मंच हो, चाहे गांधी और कांग्रेस के प्रति आदर रखते हुए भी अपने संवैधानिक रास्ते पर चलने की दृढ़ता हो या फिर चाहे किसानी को सूदखोरी और मुनाफाखोरी के चंगुल से छुड़ाने की उनकी जिद्द हो।

कहा जा सकता है कि किसानों को कर्ज से छुटकारा दिलाने वाला चौधरी छोटूराम का फार्मूला आज भी ग्रामीण क्षेत्रों को आत्महत्याओं के विषम-चक्र से बचा सकता है।

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सर छोटू राम

जन्म: 24 नवम्बर 1881, दिल्ली-रोहतक मार्ग पर गांव गढ़ी-सांपला, रोहतक (हरियाणा-तत्कालीन पंजाब सूबा) में       चौधरी सुखीराम एवं श्रीमती सिरयां देवी के घर। 1893 में झज्जर के गांव खेड़ी जट में चौधरी नान्हा राम की सुपुत्राी ज्ञानो देवी से 5 जून को बाल विवाह।
शिक्षा: प्राइमरी सांपला से 1895 में झज्जर से 1899 में, मैट्रिक, एफए, बीए सेन्ट स्टीफेन कॉलेज दिल्ली से 1899-1905।
कालाकांकर में राजा के पास नौकरी 1905-1909। आगरा से वकालत 1911, जाट स्कूल रोहतक की स्थापना 1913, जाट गजहट (उर्दू साप्ताहिक) 1916, रोहतक जिला कांग्र्रेस कमेटी के प्रथम अध्यक्ष 1916-1920, सर फजले हुसैन के साथ नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी (जमींदार लोग) की स्थापना 1923, डायरकी में मंत्राी 1924-1926, लेजिस्लेटिव काउंसिल में विरोधी दल के नेता 1926-1935 व अध्यक्ष 1936, सर की उपाधि 1937, प्रोविन्सियल अटॉनमी में मंत्री 1937-1945, किसानों द्वारा रहबरे आजम की उपाधि से 6 अप्रैल 1944 को विभूषित, भाखड़ा बांध योजना पर हस्ताक्षर 8 जनवरी 1945।
निधन: शक्ति भवन (निवास), लाहौर-9 जनवरी 1945।
1923 से 1944 के बीच किसानों के हित में कर्जा बिल, मंडी बिल, बेनामी एक्ट आदि सुनहरे कानूनों के बनाने में प्रमुख भूमिका। 1944 में मोहम्मद अली जिन्ना की पंजाब में साम्प्रदायिक घुसपैठ से भरपूर टक्कर। एक मार्च 1942 को अपनी हीरक जयंती पर उन्होंने घोषणा की-‘मैं मजहब को राजनीति से दूर करके शोषित किसान वर्ग और उपेक्षित ग्रामीण समाज कीसेवा में अपना जीवन खपा रहा हूं।’ भारत विभाजन के घोर विरोधी रहे। 15 अगस्त 1944 को विभाजन के राजाजी फॉर्मुले के खिलाफ गांधी जी को ऐतिहासिक पत्र लिखा।

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