चौधरी छोटू राम, अनुवाद-हरि सिंह
पाठक, शायद शिकायत करेंगे कि मैं एक ही विषय की ओर बार-बार और रोज-रोज झुकता हूं। जमींदार की मुसीबत, जमींदार की टूटी-फूटी हालत, जमींदार की गंभीर समस्याओं का इलाज, जमींदार की मनोवृत्ति में परिवर्तन की आवश्यकता, ऐसे-ऐसे विषयों पर मैं महीनों से कलम चला रहा हूं। उन्हीं बातों की ओर उन्हीं विचारों को बार-बार पढ़कर लोगों का मन उकता गया होगा। परन्तु मैं फिर इसी मजमून को छेड़ता हूं। साधारणतः मेरी चेष्टा अनुचित और शिकायत के योग्य दिखाई देगी। परन्तु मैं भी अपने स्वभाव से विवश हूं। मैं जानता हूं कि मनुष्य का मन नई-नई चीजों की ओर चला करता है। मैं यह भी समझता हूं कि मनुष्य का स्वभाव परिवर्तन को पसंद करता है, परन्तु फिर भी मैं अपने मजून को दोहरा रहा हूं।
कारण बताऊं कि मैं ऐसा क्यों करता हूं? मुझे अभी यह संतोष नहीं हो रहा है कि जिस उद्देश्य के लिए मैं यह मजमून लिख रहा हूं वह पूरा हो चुका है। मैं अपने-आपको एक डाक्टर या हकीम समझूं और पाठकों को या जमींदार वर्ग को बीमार समझूं तो मैं कहूंगा कि मेरा रोगी अभी अच्छा नहीं हुआ। यदि किसी रोगी के हाथ में गहरा घाव हो और डाक्टर इलाज शुरू करे तो वह प्रतिदिन इस हाथ को खोलेगा, घाव को धोएगा, दवा लगवाएगा और इसके ऊपर पट्टी बांधेगा। प्रतिदिन यही अमल करेगा। संभव है कि रोगी बदबूदार दुर्गंध भरी दवा से तंग आ जाए। संभव है कि रोगी समझे कि वह उसके हाथ को पट्टी से मुक्त करके उसको खुली हवा में रखा जाए तो अच्छा है वह अपना नागवार अमल रोगी के इच्छा के विरुद्ध भी जारी रखता है। मेरा भी यही हाल है। जो प्रभाव मैं उत्पन्न करना चाहता हूं, जो छाप में डालना चाहता हूं, उसमें कमी है। इसलिए इस विषय की ओर बार-बार लौटता हूं।
ऐ जमींदार! याद रख, नीचे को देखना, छोटे विचार रखना, और उत्साहहीन होना, अवन्नति और गिरावट के कारण है। ऊंची निगाह, ऊंचे विचार, ऊंचा उत्साह उन्नति और तरक्की की सीढ़ियां हैं। तू अब तक नीची निगाह, छोटे विचार और टूटे हुए दिल वाला रहा है। इसलिए धूल में लोट रहा जमीन पर पड़ा है और दुनिया भर की ठोकरें खा रहा है। बुलंद नजर, बुलंद ख्याल और बुलंद हिम्मत वाला बन। फिर देख। तरक्की और समृद्धि तेरे चरण चूमती है या नहीं। आसमान तुझे मेहमान बनाता है या नहीं। फलक के तारे तुझे अपने साथी बनाते हैं या नहीं। दुनिया के बंदे तुझे ठोकर मारने के स्थान पर तुझे अपने सर पर बैठाते हैं या नहीं। तनिक नुस्खे की परीक्षा तो कर और फिर इस हुक्म के कागज का प्रभाव देख। जो आज तुझको जलील समझते हैं वही तुझको आदर के योग्य घोषित करेंगे। जो तुझसे नफरत करते हैं, वे तेरी दोस्ती को अपने लिए गौरव की बात समझेंगे। जो आज तक तुझको हिकारत की निगाह से देखते हैं, वे तेरे सामने नजर भी नहीं उठा सकेंगे।
भोले जमींदार। तू अपने भोलेपन से यह समझता है कि तू कुछ नहीं। वास्तव में तू सब कुछ है। तू अपने बादशाह का सिपाही है। अपने देश का रक्षक है। तू सरकारी खजाने को भरने वाला है। तू साहूकार की तिजोरियों को आंटने वाला है। तू दुनिया का अन्नदाता है। तू शराब की मजलिस की शान है। कचहरियों की चहल-पहल तुझसे ही है। जेलों की आबादी तुझसे है। बाजारों की रौनक तुझसे है। मंडियों की गरम बाजारी तेरे कारण है। रेल गाड़ियों में भीड़-भाड़ तेेरे कारण है। मेलों की भीड़ तू ही बनाता है क्या कहूं, मैं तो कोई वस्तु ऐसी नहीं सोच सकता जिसमें तू नजर नहीं आता हो। तू ही बड़ा है, तू दुनिया की शान है। तू ही हिन्दोस्तान है।
किसी भी हालात में और कभी भी तू यह न समझ कि तू कुछ नहीं है। तेरे अंदर तो पहाड़ की मजबूती छिपी हुई है। तेरे अंदर तो तूफान की तेजी भरी पड़ी है। तेरे अंदर बाढ़ की ताकत पौशीदा है। तेरे अंदर नदी का शोर साया हुआ है। तेरे अंदर सूर्य की ज्योति का प्रकाश है। यदि एक बार तू अपने सब गुणों का अनुभव कर ले और जरूरत के अनुसार समय-समय पर कभी-कभी इनका थोड़ा प्रकाश भी कर दिया करे तो फिर भी सारा जहान (दुनिया) तेरा गुलाम फरमांबरदार हो जाएगा। तू पीर होगा, दूसरा बंदा। तू आका होगा। तू मुरीद होगा, तू गुरु होगा, दूसरा गुलाम। तू हाकिम होगा, दूसरा महकूम। तू शासक होगा, दूसरा शासित। अब तक तेरे दीनभावना और छोटे विचार, की तू कुछ नहीं है, ने तेरा बेड़ागरक किया हुआ है। तेरे पास अपनी तमाम मूर्खता का, अपनी बीमारियों का, अपने मैले कपड़ों का, अपने मैले पड़ोस का, अपने बीमार पशु और अपनी मजबूरियों का एक ही किफायत व आराम देने वाला सहज बहाना है, ‘अजी मैं तो जो किसान ठहरा। किसानों का ऐसा ही हाल होता है।’ इस पौच ख्याल (छोटे विचार) को अपने सीने से जलावतन कर दे। यह समझ ले कि तू बड़ी चीज है। तू एक आदर करने योग्य हस्ती है। दुनिया की तमाम अच्छी चीजें तेरी दास हैं, शारीरिक स्वास्थ्य, शारीरिक शक्ति, अकल, बुद्धि, धन, इज्जत, दबदबा, बुजुर्गी, शर्म व हया, जलाल, इकतिदार, सरकार सब तेरे लिए बने हैं। न्याय और धर्म के साथ इन तमाम चीजों पर काबू पाना और न्याय और धर्म के साथ इनका प्रयोग करना अधिकार और फर्ज है। इस विचार को सदा अपने दिल के शीशे के सामने रख और इस शीशे में इसका पक्का चित्र उतार दे। फिर देख कि यह तमाम चीजें लौडियों और बांदियों की तरह हाथ बांधे तेरे दरबार में उपस्थित होती हैं या नहीं। ऐ जमींदार! तू बड़ा संतोषी, थोड़ी सी चीज पर सबर करने वाला, विनम्र, सहनशील और शांतिप्रिय, मेल और प्रेम से पेश आने वाला है। परन्तु मैं तेरी इस एक ओर आदत का हुलिया बदलना चाहता हूं संतोषी नहीं, इच्छुक बन। कनायत नहीं, होशमंदी अखतियार कर। नरमी छोड़कर सख्ती और कठोरता को स्वभाव का भागी बन। सहनशीलता को खुदा हाफिज कह। दिल को खुरदरी चिंगारियों से गरम कर। समझौते की नीति को त्याग दे। जंगजू (लड़ाकू) बन जा।
कनायत, संतोष, सब, विनम्रता, सहनशीलता और समझौता-नीति और मेल-मिलाप सब नेक गुण हैं और विशेष परिस्थतियों में और विशेष सीमा तक प्रशंसनीय है। परन्तु जब ये सीमा से बढ़ जाते हैं और परिस्थितियों को देखे बिना किसी व्यक्ति या वर्ग की आदत और स्वभाव का पक्का अंग बन जाते हैं, तो यही गुण अवगुणों की तासीर धारण करा लेते हैं। इन गुणों ने तुझे तेरे तेजस्वी ज्योति में गुणों से खाली कर दिया। तेरे गर्व, बड़प्पन और बुजुर्गों की गर्मी तेरे दिल से निकल गई। तेरा जलाल चला गया। तेरा स्वाभिमान लुप्त हो गया। तेरी पुरुषार्थ करने की शक्ति दुर्बल पड़ गई है। सुस्ती (आलस्य) ने तेरी आत्मा पर काबू पा लिया। तेरे मुर्गे ख्याल के पंख कट गए। तेरा उत्साह गिर गया। मैं मेल-मिलाप व शांतिप्रिय नीति से संघर्ष के पथ पर आने की जो हिदायत तुझे देता हूं यह अर्थ नहीं है कि तु कल्लों और बलवों की संख्या को बढ़ा दे। शांति के युग में भी संघर्ष के विशेष तरीके हुआ करते हैं। संघर्ष के इन नए तरीकों पर अमल कर। सरकार से संवैधानिक तरीकों से लड़। साहूकारों की बद दयानति और सख्त गिरी से टक्कर ले। अपने अधिकारों को हड़प करने वाले लोगों के अत्याचारों से दबे हुए अधिकारों को वापिस लेने के लिए लड़ाई की नई आदत डाल। जालिम के सामने सिर न झुका। उसके अत्याचार और जुल्मों का कानूनी मुकाबला कर। रिश्वतखोर व भ्रष्ट अधिकारी के सामने पोल खोल दे और वीरता के साथ बददयानती, जुल्म, भ्रष्टाचार और पाप का सीना तानकर मुकाबला कर, दब्बूपना छोड़ दे।
गूंगे जमींदार! तू चुप क्यों है? मुझे तेरी खामोशी पसंद नहीं। तेरी इस खामोशी के गलत अर्थ लिए जाते हैं। साहूकार समझता है कि तुझे उसकी बददयानती और सख्तगिरी का पता नहीं। शहरी समझता है कि वह तेरे अधिकारों को हड़प गया, परन्तु तुझे खबर नहीं, कोई शिकायत ही नहीं। यदि कोई कष्ट होता तो रोने की आवाज सुनाई देती। यदि कोई शिकायत होती तो फरियाद की गिड़गिड़ाहट सुनने में आती। न रोना है, न शिकायत है, जिससे मालूम होता है कि भ्रष्ट व शिकायत का कोई जादू नहीं होगा।
ऐ जमींदार! भूल मत कि मां जो स्नेह, प्रेम और प्यार का पुतला है, बिना रोए तो वह भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती। तू कैसा पागल है कि जो समझता है कि सरकार बिना रोए ही तेरी तकलीफ को समझ जाएगी और तेरी शिकायत दूर कर देगी। याद रख कि यह सरकार भी अजीब सरकार है। पहली सरकारों जैसी सरकार नहीं। पहले तो जहां राजा, बादशाह या सूबेदार को किसी मजलूम की शिकायत का पता चला या प्रजा के कष्ट मालूम होते ही वह तुरंत आदेश जारी करके शिकायत व कष्ट को दूर कर सकता था हमारी वर्तमान सरकार तो दफ्तरी सरकार है, कानून और जाब्ते की सरकार है। मानवीय भावनाओं से इसका क्या संबंध। जब तक कागज का पेटा न भर जाए तब तक कोई काम नहीं चलता और कागज का पेटा तब तक नहीं भरता, जब तक कई छोटे-मोटे मातहत नौकरों का पेट न भर जाए। सच्ची बात यह है कि हमारी मौजूदा सरकार की अकल तब तक हरकत में नहीं आती, जब तक कि सारे कानूनी और जाब्ता की कार्रवाई पूरी न हो जाए, मगर कानूनी कार्रवाई को पूरा करने और जाब्ते की पाबंदी के लिए इतना पैसा, समय, संतोष व धैर्य चाहिए जो गरीबों के पास नहीं है। ऐसी परिस्थिति में आवश्यक है कि तू भी वही तरीका अपना ले जो बाकी दुनिया ने अपना रखा है और वह तरीका है रोने और मांगने का। दुनिया शोर मचाती है। तू भी शोर मचा, दुनिया आकाश को गूंजाने वाले नारे लगाती है। तू भी आसमान को अपने नारों से गुंजा दे। जब और की सुनवाई होती है तो तेरी भी सुनवाई क्यों न होगी? सदा याद रखा कि बिना चीखे-चिल्लाए तेरी कोई सुनवाई नहीं होगी।
ऐ जमींदार! तू दूसरों की सेवा करना चाहता, पर अपनी सेवा करना नहीं जानता। सिक्ख लीग, मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, खिलाफत कमेटी, मुस्लिम कान्फ्रेंस, प्रबंधक कमेटी, अकाली दल, महावीर दल, चीफ खालसा दीवान, मजलिसे अहरार और कांग्रेस सब तेरे दमखम पर टिके हुए हैं, तेरे बलबूते पर चलते हैं। इनमें से किसी का भी जलसा हो, तू हजारों की संख्या में पहुंचता है। इसको चंदे की जरूरत हो तू थैली की थैली खाली कर देता है, लेकिन तू इनके इतिहास पर तनिक दृष्टि डाल। जरा इनकी सरगर्मियों को देख। क्या इनमें से किसी ने तेरे लिए कुछ किया है? क्या ये तेरे दुखों को जानते हैं? क्या ये तेरे रोग को जानते हैं? हरगिज नहीं।
यह तो सब शहरियों के चोचले हैं। इनके मनोरंजन का साधन हैं। सरकार को परेशान करने की चालें हैं या अपने यारों के लिए नौकरी दिलवाने के साधन हैं। मगर इसके बावजूद तू परवाने की भांति इन पर लट्टू है। इससे उल्टा तू जमींदार लीग (पंजाब राष्ट्रीय संयुक्त पार्टी) की ओर से बिल्कुल गाफिल है। सच बता, क्या तू जमींदार लीग का सदस्य है? क्या तूने कभी जमींदार लीग को चंदा दिया? बता तू कितनी बार जमींदार लीग के जलसों में शामिल हुआ है? जमींदार लीग विशुद्ध रूप से तेरी बिरादरी की पंचायत है और केवल तेरे ही लाभ के लिए बनी है। यद्यपि जमींदार लीग नरम नीति से कार्य करती है और जेल में जाने को बड़ाई नहीं समझती और न ही इसके प्लेटफार्म से भाषण देने मात्र से कोई व्यक्ति बड़े नेताओं में गिना जाता है। इसका तमाम प्रोग्राम व कार्य केवल तेरे सुधार और उद्धार के लिए है। अगर तू तरक्की चाहता है तो जमींदार लीग का सेवक बन जा। अब तक तूने दूसरों की, परायो की सेवा की है। अब अपनी सेवा में लौ लगा ले। अपनी सेवा में जुट जा अपनी पगड़ी संभाल।
अंत में मेरे जमींदार भाई! यदि तू बुर न माने तो तेरा एक दोष और बता दूं। तू बड़ा डरपोक है, कायर है। किसी चुगलखोर ने यह संकेत किया कि डिप्टी कमीशनर जमींदार लीग से नाराज है, तेरे होश गुम हो जाते हैं, तू भयभीत हो जाता है। जहां किसी गैर-जमींदार पटवारी ने धमकी दी कि ‘मैं जमींदार लीग के खिलाफ रिपोर्ट सदर में भेजूंगा’, तेरे देवता कूच कर जाते हैं। जहां जमींदार लीग की मीटिंग में कोई हेड कांस्टेबल या कोई पुलिस का सिपाही दिखाई दिया तो तू डर के मारे मुंह छिपाने लगता है। तुझे रस्सी भी सांप नजर आती है, भेड़ का भेड़िया नजर आता है क्या यह तेरी उन्नति करने के लक्षण हैं? यदि तरक्की करना चाहता है तो कार्यक्षेत्र में बहादुर पुरुष का बाना पहनकर कूद पड़, आलस्य त्याग, संघर्ष के मैदान में अपने हाथ दिखा और पैसा खर्च कर, कड़ी मेहनत कर। समय दे। दिल से भय के भूत को निकाल दे, क्योंकि:
दिले-बे-बाकरा जरगाम रंग अस्त।
दिले-तरशीदारा आहू पलंग अस्त।।
(आजाद दिल शेर के सामान होता है और तराशे हुए दिल वाला हिरण भी चीता बन जाता है)।