अर्शदीप
यह एक राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक अवधारणा है। इसका प्रतिपादन भक्तिकाल के महान संत श्री गुरु रविदास (1433-1577*)जी ने अपनी वाणियों के जरिये किया था. उनका एक शब्द नीचे दिया जा रहा है जो बेगमपुरा अवधारणा (concept) का मूल आधार है. और यह उस समय के तमाम भक्तिकालीन संतो (कबीर, नानक, सदना, सैन, त्रिलोचन) के विचारों का प्रतिनिधित्व करता है.
बेगमपुरा शहर को नांव, दुख अंदोह नहीं तिस ठांव।
न तसवीस, खिराज न माल, खौफ, खता न तरस जवाल।
कायम दायम सदा पातशाही, दोग न सोम, सब एक सो आही।
आबादान सदा मसहूर, वहां गण बसैं मामूर।
वहां सैर करो जहां जी भावै, महरम, महल न कोय अटकावै।
अब मोहि खूब वतन गहि पाई, वहां खैर सदा मेरे भाई।
कहे रविदास खालस चमारा, जो हमसहरी सो मीत हमारा।
प्रयुक्त शब्दों के अर्थ – बेगमपुरा-दुख रहित, जहां गम न हो, शोषण न हो, नांव-नाम, अंदोह-झगड़ा, दंगे-फसाद, तीस ठांव-उस जगह, तसवीस–फिक्र, चिंता, खिराज– पछतावा, माल–टैक्स, खौफ–डर, खता–गलती, धौखा, तरस–लाचार पर दया, जवाल– अभाव, कायम–दायम–कायम रहना, पातशाही–सच्चाई का राज, सच्च की हकमूत, दोम–दूसरे दर्जे का, सोम–तीसरे दर्जे का, आबादान–जीविका, गण–गण राज्य (जिसमें लोग काबिल लोगों को अपना नेता चुनते हैं) मामूर–मामूल, कानून अनुसार, महल–राजा, राजशाही, अटकावे–रोकना, मोहि–मुझे, खूब–बहुत अच्छू तर से, वतन–देश, गहि पाई– गहरी समझ आई, खैर–कल्याण, सुख, खालस चमारा–शुद्ध चमार, हमसहरी–साथ में रहने वाला, नागरिक, मीत–प्यारा, साथी, दोस्त।
बेगमपुरा शहर को नांव, दुख अंदोह नहीं तिस ठांव।
(बेगमपुरा शहर का नाम–दुख–फसाद न हो जिस स्थान)
गुरु रविदास जी उस समय की सामंतवादी, ब्राह्मणवादी जातिवादी व्यवस्था को देखते हुए, खुद व बहुसंख्यक वंचित-उपेक्षित वर्गों की दयनीय स्थिती महसूस करते हुए साथ में खुद उस शोषणकारी व्यवस्था का शिकार होते हुए महसूस करते हैं कि कोई ऐसी जगह होनी चाहिए जहां गम न हो, यानी बे+गम+पुरा=बेगमपुरा यानी जहां दुख-तकलीफ, शोषण-उत्पीड़न किसी भी मनुष्य को न हो ऐसा बेगमपुरा शहर या देश बसाने की बात गुरु रविदास जी करते हैं.
न तसवीस, खिराज न माल, खौफ, खता न तरस जवाल।
(न चिंता, पश्चाताप न लगान, भय, अपराध न दया अभाव)
श्री गुरु रविदास जी लिखते हैं कि उस देश में किसी को कोई चिंता नहीं होनी चाहिए, किसी को कोई खिराज* (पछतावा) नहीं होना चाहिए, देश के नागरिकों पर टैक्स नहीं होना चाहिए, क्योंकि उस समय राजाओं का लगाया हुआ लगान किसानों की कमर तोड़ रहा था. उस देश में किसी को किसी का डर नहीं होना चाहिए और न किसी चीज का किसी को अभाव हो. लोग एक दूसरे पर दया करें.
कायम दायम सदा पातशाही, दोम न सोम, सब एक सो आही।
(राज बना रहे सच्चाई का कायम – दोयम, तियम न कोई सभी हो एक समान)
उस बेगमपुरा नामक देश में हमेशा पातशाही (सच्च का राज) रहना चाहिए न कि बादशाही (राजशाही)। और उस देश में दूसरे-तीसरे दर्जे की कोई श्रेणी नहीं होनी चाहिए, सारे नागरिक एक समान होने चाहिए।
आबादान सदा मसहूर, वहां गण बसैं मामूर।
(रोजी–रोटी हो कानून सम्मत–और शासन हो गणतंत्रात्मक)
उस बेगमपुरा में जीवीका हमेशा समाज के कानून सम्मत होनी चाहिए, वहां साधरण रुप से गण राज्य की व्यवस्था होनी चाहिए। (बुद्धकाल गण राज्यों से सामंती राज्य बनने का काल रहा है. गण राज्य में लोग अपने कबिले का नेता व्यक्ति की योग्यता देखते हुए चुनते थे, वोट का अधिकार होता था, लेकिन सामंती काल में राजशाही चली जिस में राजा का बेटा राजा बनता था.) श्री गुरु रविदास जी राजशाही की जगह पर गण व्यवस्था की वकालत करते हैं और कहते हैं कि वहां पर गणतंत्रात्मक शासन की व्यवस्था होनी चाहिए।
वहां सैर करो जहां जी भावै, महरम, महल न कोय अटकावै।
(सैर करो जहां जी भावै – कानून, सरकार न कोई रोक लगावै)
श्री गुरु रविदास जी के समय शुद्रों को गांव में जाने तक की आजादी नहीं होती थी, मंदिर में जाने का तो नाम भी नहीं ले सकते थे.शुद्रों, अछूतों को किसी भी तरह की राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक, सांस्कृतिक आजादी नहीं थी. श्री गुरु रविदास जी लिखते हैं कि ऐसा देश बने जहां पर नागरिक कहीं भी घूम फिर सके, अपनी अजीवीका कमा सके, कोई कानून सरकार उस पर रोक न लगा सके.
अब मोहि खूब वतन गहि पाई, वहां खैर सदा मेरे भाई।
(अब मुझे ऐसे देश की समझ आई – जहां सब सुख–चैन से बसे मेरे भाई)
श्री गुरु रविदास जी लिखते हैं कि अब मुझे ऐसे देश की समझ आ गयी है, जहां पर सारे नागरिक (भाई) हमेशा सुक-चैन (खैरियत) से रहेंगे.
कहे रविदास खालस चमारा, जो हमसहरी सो मीत हमारा।
(कहे रविदास खालस चमारा – जो हमारे साथ रहे वह दोस्त हमारा)
आगे श्री गुरु रविदास जी स्पष्ट करते हैं कि जो लोग हमारे साथ रहेंगे, साथ देंगे और ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनाना चाहेंगे वहीं हमारे दोस्त हैं.
प्रो. सुभाष सैणी, संपादक देस हरियाणा द्वारा बेगमपुरा की जबरदस्त व्याख्या
बेगमपुरा की अवधारणा चाहे कितनी भी पूरानी हो लेकिन आधुनिक व्यवस्था, गणतांत्रिक-लोकतांत्रिक मूल्यों को समेटे हुए है. और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह कि राजसत्ता, राष्ट्र की बेगमपुरा अवधारणा उस समय के युरोपीय देशों से कहीं ज्यादा प्रगतिशील व जन हितैषी है. यहां तक की बंधुता-स्वतंत्रता-समानता आधारित पेरिस कम्युन की अवधारणा (1871) बहुत बाद में आयी उस से पहले हमारे महान संतों ने बिल्कुल वैसी ही सामाजिक-राजनीतिक-व्यवस्था की कल्पना की थी.
बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी भी संत श्री गुरु रविदास जी की इस अवधारणा का पूर्ण अनुमोदन करते थे और उन्होंने जब ब्रिटेन में बेगमपुरा अवधारणा के बारे में पढ़ा बाबा साहेब पर इसकी गहरी छाप पड़ी और वह छाप उनके लेखन में स्पष्ट झलकती है. वह भी देश के उपेक्षित-वंचित वर्गों के लिये ऐसी दुनिया की अवधारणा प्रस्तुत करते हैं कि जहां बंधुता-स्वतंत्रता-समता हो.