चुराही (चंबा जिले के चुराह तहसील की पहाड़ी बोली) में पहेलियों को फड़ौणी कहा जाता है। जब बर्फ गिर रही होती है तो घर के सारे सदस्य रसोई में जमा रहता हैं। रसोई में लोहे का बड़ा चुल्हा होता है जिसे वह तंदूर कहते हैं वह पूरे कमरे को गर्म कर देता है। रसोई काफी बड़ी होती है। ठंड में अंदर जमा हुए बच्चे-बूढ़े परिवार के सारे सदस्य मनोरंजन के लिए इस तरह की फड़ौणियां पूछते हैं। प्रस्तुत हैं कुछ फड़ौणियां जिसको हमारे पास भेजा है शंवाई गांव के दो बच्चों – दिव्या ठाकूर और प्रवीण ठाकूर ने। जो हिमगिरी स्कूल के क्रमशः 8वीं 9वीं के छात्र हैं।
हच्छा छैल्ला – लात्ते बैल्ला
उतर- हिंयू (बर्फ)
चार चिड़ी चुआकन लागी, दो चिड़ी दो नाचन लगी।
उतर- गाय की चीची (थन)
ऐ गियू , ऐ यू
उतर- टेर (आँख)
आने काने बूझ नड़ाने
उतर- सुवान (दरवाजा)
ऐड़हा भाई काने, बदरो बजे भांडे
तेड़हा बहे जस्साए
पंजाह मेनु फसे
उतर- बंदूक
लाल चिड़ी चुबड़क
उतर- बबरू (पहाड़ी व्यंजन)
अंक मूंड, लख डूंड
उतर- कूंदू (तुड़ी का कूप)
इतुंडवा आ पण बड़ो लम्बुआ
उतर- सड़क
तांडा पणी केड़, दरढ़ो-दरिड
उतर- सिणक