– अर्शदीप सिंह
बिच्छु बूटी की सब्जी
यह एक जहरीला पौधा है। हरे रंग और पान के आकार के पत्तों वाले इस पौधे पर असंख्य कांटे होते हैं। अगर कांटा कहीं छू जाए तो बिच्छु के काटने जैसा तेज दर्द होता है। यह दर्द लगभग 24 घंटे रहता है। इस लिए इस को बिच्छु बूटी कहा जाता है। जहां पर बिच्छु बूटी होती है वहीं पर इसके दर्द को ठीक करने वाली पालक जैसी घास भी होती है। अगर गलती से बिच्छु बूटी का कांटा लग जाए तो इस घास के पत्ते को पीस कर इसका रस लगा लें। जल्दी राहत मिलेगी।
इस जहरली सब्जी को पहाड़ी लोग बर्फ पड़ने पर या ज्यादा ठंड होने पर साग बनाकर खाते हैं। इसका साग बहुत स्वादिष्ट होता है। इसका साग बनाने की विधि तो आम तौर पर सरसों के साग बनाने की तरह ही है लेकिन समस्या बस इसको तोड़ने की है कहीं इसके कांटे न लग जाएं। इस लिए गांव की या परिवार की बड़ी बुजुर्ग अनुभवी महिलाएं ही इसको तोड़ने के लिए जाती हैं।
बनाने की विधि –
बिच्छु बूटी के पत्तों को पानी में उबाल लें। पानी उतना ही डालें जितना उसमें समा जाए और पानी फेंकना ना पड़े।
जब वह उबल कर पक जाए तो उसको घोटने से घोट दें।
सामान्य प्याज-लहसून का तड़का लगा कर रोटी के साथ खाएं।
खाते समय ध्यान रहे कि साथ में कुछ न कुछ खट्टा जरूर लें जैसे आम, नींबू और गलगल का आचार। यह इसके जहरीले प्रभाव को कम कर देता है। बहुत छोटे बच्चों को यह न खिलाएं ज्यादा गर्म तासीर होने के कारण मुंह में छाले हो सकते हैं।
मीठे-नमकीन बबरू
बबरू कुछ-कुछ पूरी, कचौड़ी और गुलगुलों का मिला जुला सा रूप है। देखने में यह पूरी या कचौरी जैसे दिखाई देते हैं लेकिन खाते समय यह कुछ-कुछ डबल-रोटी जैसा एहसास देते हैं। इसको गेहूं के आटे से बनाया जाता है।
गेहूं के आटे थोड़ी सी लस्सी और थोड़ा सा गलगल का रस डाल कर तैयार किया जाता है। इस में नमक, अजवायन भी डाली जाती है। इसका आटा गुलगुले या पकौड़े बनाने की तरह पतला बनाया जाता है।
एक कड़ाही में तेल गर्म कर के लगभग पूरी के आकार में आटा डाला जाता है। यह फूल कर पूरी जैसा हो जाता है। लेकिन अंदर से पूरी की तरह खाली नहीं होता।
खान में स्वादिष्ट है। आम तौर पर देशी राजमा की सब्जी के साथ परोसा जाता है।
इसी प्रकार इसी आटे में गुड़ या चीनी डाल कर मीठे बबरू बनाए जाते हैं जो कि बिना सब्जी के खाए जाते हैं।
चिरौड़ी
यह बहुत ही पुरानी रेसपी है जिस को अनुभवी बुजुर्ग महिलाएं ही बनाती हैं। इसके लिए विशेष प्रकार के गोल चुल्हे की जरूरत होती है। इस पर बड़ा तवा रखा जाता है जो ज्यादातर इसी को बनाने के लिए इस्तेमाल होता है। जिस घर में हमने इसका स्वाद लिया वह लगभग 80 साल पुराना मिट्टी का घर था। घर में सब पुरानी चीजें ही रखी हुई थी जो नए घरों में दिखाई नहीं देती। इसको बनाने के लिए एक विशेष प्रकार में मिट्टी के बर्तन की जरूरत होती है जिसको चरौड़ कहा जाता है। यह कुछ-कुछ हरियाणा में पहले घी रखने लिए बनाई जाने वाली कुलिया जैसा होता है जिसको बीच से थोड़ा सा ऊपर, वजू करने वाले लोटे की तरह 4 नालियां लगी होती है।
इसके लिए आटा गुलगुले या पुड़ों जैसा बनाया जाता है। यह भी नमकीन और मीठा दोनों तरह का होता है। आटा को चिरौड़ में तवे पर तेल लगाया जाता है। दोनों तरफ से जाल को पकाया जाता है जिसको चिरौड़ी कहते हैं।
इसको देशी घी को गर्म कर उसमें डूबो-डूबो कर खाते हैं।