बुद्ध प्रकाश
प्रगति तथा समृद्धि के इस काल में हरियाणा के लोग विदेशों में जाकर बस गए और वहां बस्तियां बना लीं। सौभाग्यवश कम्बोडिया के एक उपनिवेश के संबंध में कुछ रोचक सूचना उपलब्ध है। वतफू के एक शिलालेख से यह स्पष्ट होता है कि मेकांग नदी के साथ का पूर्वी प्रदेश कुरुक्षेत्र कहलाता था जिससे यह प्रमाणित होता है कि हरियाणा में कुरुक्षेत्र से प्रवासित व्यक्ति ही वहां निवास करते थे (जी कोइडेस ‘इन्सक्रिप्शन्ज डू कैम्बोज’, जिल्द-5, पृ. 9)। 1037-38 ईसवी के प्राह बिहार में पाए गए एक अन्य अभिलेख से यह प्रकट होता है कि कुरुक्षेत्र वासी सुकर्मन राजकीय पुराभिलेखपाल था। उसके वंश ने कम्बुज राजवंश के अभिलेख, विशेषतः श्रुतवर्मन से लेकर सूर्यवर्मन तक के नरेशों की उपलब्धियों के पुरालेख, संभाल कर रखे। ये अभिलेख पत्रों पर रखे गए और शिखरीश्वर तथा बुद्धेश्वर के संग्रहालयों में संग्रहीत किए गए। इन संग्रहालयों में नरेशों के इतिवृत्त भी उतनी ही सावधानी से सुरक्षित रखे गए। पुरालेखपाल सुकर्मन ने यह कार्य बहुत ही अच्छे ढंग से किया और इसी कारण राजपतिवर्मन की सिफारिश पर उसे कम्स्तैन की उपाधि और विभेद का क्षेत्र दे दिया गया। वहां रहने वाले कम्स्तैन श्री महीधरवर्मन से संबंधित बपमौ के परिवार के लोग रंगोल क्षेत्र में बस गए थे। इस प्रकार सुकर्मन, उसके वंशज तथा अन्य लोग विभेद में बस गये तथा अपने मूल प्रवेश के नाम पर उसका नाम कुरुक्षेत्र रख दिया। इस प्रकार कम्बोडिया में एक ओर कुरुक्षेत्र बन गया। (जी. कोएडेस, ‘इंसक्रिप्शन्स डू कैम्बोज, जिल्द-5, पृ. 260-67)।
सुकर्मन के जीवन क्रम से पता चलता है कि कुरुक्षेत्र के लोग कर्मठ एवं दिलेर तथा शिष्ट विद्वान भी थे। यह व्यक्ति अपनी ऐतिहासिक कुशाग्रता, पांडित्यपूर्ण अभिरुचि तथा भाषा पर अधिकार होने के कारण उन्नति करते-करते राजकीय पुराभिलेखपाल के पद पर पहुंचा। उसकी प्रशासकीय योग्यता भी अवश्य ही उत्कृष्ट कोटि की रही होगी, जिसके कारण उसे राजकीय सम्मान प्राप्त हुआ। वह बादशाह का कृपा पात्र बना। परन्तु, कम्बोडिया के शासक के प्रति अपनी राजभक्ति के बावजूद, वह अपनी जन्मभूमि कुरुक्षेत्र को न भूल सका और उसने अपने नए प्रदेश का नाम कुरुक्षेत्र ही रख दिया। इस प्रकार उसने कुरुक्षेत्र की पवित्रता, संस्कृति तथा इतिहास को कम्बोडिया में पहुंचाया और वहां पर इसके लिए एक स्थायी आधार बना दिया। इससे कम्बोडिया के लोगों में उन सभी बातों के लिए कौतुहल तथा निष्ठाभावना जागृत हुई, जिसका प्रतीक कुरुक्षेत्र है।
साभार-बुद्ध प्रकाश, हरियाणा का इतिहास, हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला, पृ. 31
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