बुद्ध प्रकाश
इस प्रकार लोग कृषि-कार्य में प्रवृत्त हो गये जबकि पूर्व में साम्राज्य-वादी गतिविधियों तथा उत्तर-पश्चिम में आक्रमणकारी शक्तियों की गति तीव्र से तीव्रतर होती गई। मगध साम्राज्य गंगा तक फैल गया और पंजाब में फारसी तथा मैकडोनियन आक्रमणों का बोलबाला हो गया। इन परिस्थितियों में हरियाणा के लोग सचेत रहे। सिकन्दर ने व्यास पहुंच कर उनकी समृद्धि तथा शौर्य की बात सुनी। यूनानी इतिहासकार अर्रियन ने उनके बारे में लिखा हैः-
‘हाइफैसिस (ब्यास) पार का देश अत्यधिक उपजाऊ और वहां के निवासी अच्छे कृषक तथा योद्धा समझे जाते थे और वहां की प्रशासनिक व्यवस्था अत्युत्तम समझी जाती थी, क्योंकि जनसमुदाय पर अभिजातवर्ग का प्रशासन था, जो शक्ति का प्रयोग करने में न्याय तथा मर्यादा का ध्यान रखते थे यह भी कहा जाता है कि अन्य भारतीयों की अपेक्षा वहां के लोगों के पास हाथी अधिक संख्या में तथा उत्कृष्ट डीलडौल वाले तथा बहादुर थे। (जे डब्ल्यू एम क्रिंडल इन्वेजन आफ इंडिया बाई ऐलेक्जैंडर दी ग्रेट, पृ. 121)।
इस विवरण से पता चलता है कि ये लोग कृषि अर्थ-व्यवस्था के साथ-साथ सामरिक कार्यों में भी पूर्ण रूचि रखते थे और राजतंत्री शासन की अपेक्षा अल्पतंत्री शासन में विश्वास रखने वाले सुयोग्य तथा न्यायपरायण अभिजात वर्ग के शासन में मर्यादापूर्ण जीवन यापन करते थे। उनकी राजनैतिक
सुस्थिति, आर्थिक समृद्धि और युद्धनैपुण्य, विशेष रूप से शक्तिशाली गज सेना के कारण सिकन्दर की अनुभवी सेना को देश के उस भाग पर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ। परन्तु बाद में मौर्य उनको परास्त करके उन पर शासन करने में सफल हो गए, जैसा कि जगाधरी के समीप सुघ के स्थान पर उत्तरी कृष्ण प्रभार्जित बर्तनों, चनेती तथा थानेसर में अशोक के स्तूपों और हिसार तथा तोपरा में उसके स्तम्भावशेषों की खोज से स्पष्ट होता है।
मौर्य तथा शुंग सम्राटों के पतन के पश्चात् बारूत्री, युनानी, खुरासनी और कुशान आदि विदेशी लोगों के आक्रमणों से उत्तरी भारत में उथल-पुथल मच गई और हरियाणा की स्थिति अनिश्चित हो गई। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय वाणिज्य पर आधारित अर्थ-व्यवस्था को प्रचलित किया, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन क्षमता बढ़ जाने से एक नयी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण हुआ, परन्तु लोग शीघ्र ही इस स्थिति के अनुकुल द्विगुणित उत्साह से स्वतंत्रता-सेनानियों के रूप में उठ खड़े हुए। परिणामतः समस्त प्रदेश के शक-कुशान शासन के विरोधी उदीयमान लोकतंत्र-समर्थकों तथा अल्पतंत्रीय शासकों की गतिविधियां तीव्र हो गई। उनमें से यौधेय, अर्जुनायण, अग्रेय, औदुम्बर, कुनिन्दा उल्लेखनीय थे। आगामी अध्याय में उनका वर्णन किया जायेगा।
साभार-बुद्ध प्रकाश, हरियाणा का इतिहास, हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला, पृ. 11