औरां कै सिर लाणा सीख, अपणा खोट छुपाणा सीख।
खोट कर्या पछतावै ना, मंद-मंद मुस्काणा सीख।
हाथ काम कै ला ना ला, बस फोए से लाणा सीख।
बाबा बण कै मौज उड़ा, बस थोड़ा बहकाणा सीख।
खूब दवाई बिक ज्यांगी, थोड़ा पेट घुमाणा सीख।
राजनीति के झगड़े नै, जात धरम पै ल्याणा सीख।
हवा भतेरी चाल्लै सै, आग पूळे म्हं लाणा सीख।
दिन म्हं सुथरे भाषण दे, रात नै पाड़ लगाणा सीख।
किसका कौण बिगाड़ै के, शरम तार गिरकाणां सीख।
दे कै गाळ पड़ौसी नै, देशभगत कहलाणा सीख।
कत्ल कर दिया के होग्या? करकै कत्ल दिखाणा सीख।
खोजबीन कौण करै इब, पीळी कलम चलाणा सीख।
बड़ा नामवर बण ज्यागा, गीत राज के गाणा सीख।
सब बैंकां का धन तेरा, करजा ले पां ठाणा सीख।
ज्यादा मगज खपावै क्यूं, फरजी ठप्पा लाणा सीख।
गोर्की मुंशी कुछ कोनी, नाम बदल छपवाणा सीख।
आयोजक की कर तारीफ, आच्छी गोज भराणा सीख।
शाल इनाम सभी तेरे, बस ताड़ी बजवाणा सीख।
भेष बदल कै आणा सीख, हंगामा करवाणा सीख।
संपर्क—94165-13872

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By मंगत राम शास्त्री

जिला जीन्द के टाडरथ गांव में सन् 1963 में जन्म। शास्त्री, हिन्दी तथा संस्कृत में स्नातकोतर। साक्षरता अभियान में सक्रिय हिस्सेदारी तथा समाज-सुधार के कार्यों में रुचि। अध्यापक समाज पत्रिका का संपादन। कहानी, व्यंग्य, गीत विधा में निरन्तर लेखन तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। बोली अपणी बात नामक हरियाणवी रागनी-संग्रह प्रकाशित।