(कर्मजीत कौर किंशावल पंजाबी की कवयित्री हैं, गगन दमामे दी ताल कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है। इनकी कविताएं दलित जीवन के यथार्थपरक चित्र उकेरती हुई सामाजिक न्याय के संघर्ष का पक्ष निर्माण कर रही हैं। पंजाबी से अनुवाद किया है परमानंद शास्त्री जी ने। उन्होंने पंजाबी से हिंदी में गुरदियाल सिंह के उपन्यास और गुरशरण सिंह के नाटकों का अनुवाद किया है। साहित्यिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी सक्रियता से निरंतर सांस्कृतिक ऊर्जा निर्माण कर रहे हैं – सं.)
घर से जो निकलता है
सवालों की गठरी
कंधे पर लादकर
लौट आता है वह रोज
सूनी आंखों में
अनसुलझे सवाल लेकर
घर से अदालत तक का रास्ता
बहुत छोटा लगता है अब उसे
बस
बड़े तो वे सवाल हो गए हैं
जिनके जवाब तलाशते
ज़िन्दगी का बड़ा हिस्सा
ये रास्ते लील गए हैं
वह अक्सर सोचता है ,
‘ क्या यह बीमार न्याय तंत्र
मेरे सवालों के जवाब दे सकेगा
मेरे ज़िंदा रहते ?
पर वे कहते हैं –
शोर मत करो
‘अदालत जारी है ‘
बेशक
मर गए कई फरियादी
बिक गए तमाम गवाह
पर अदालत जारी है
यहां बोलने की मनाही है
ठंडी आहों की इजाजत है
सांस ले सकते हैं आप
पर उनमें बगावत न हो !
अदालत जारी है ।