राजनीतिक दलों के आंतरिक घमासान की जड़ है – सत्ता की बंदरबांट – अविनाश सैनी

अविनाश सैनी

नगर निगम चुनावों में मिली जीत की खुमारी अभी उतरी भी न थी कि विधायकों के असंतोष ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की खुशियों को हवा कर दिया। विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता सरकार में काम न होने या खुद की उपेक्षा का रोना अकसर बड़े नेताओं के समक्ष रोते रहते हैं। भाजपा सरकार में भी अनेक बार ऐसा हुआ है। परन्तु कड़े अनुशासन की बात करने वाली इस पार्टी में संभवतः पहली बार ऐसा हुआ है कि सरकार में मंत्री और विधायकों ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सीधे मुख्यमंत्री पर आरोप लगाए हैं।

गौरतलब है कि अटेली की विधायक बिमला चौधरी की अगुवाई में हरियाणा सरकार के मंत्री बनवारी लाल, विधायक एवं पूर्व मंत्री विक्रम ठेकेदार, विधायक ओमप्रकाश तथा गुरुग्राम की मेयर मधु आज़ाद ने 24 दिसम्बर को गुरुग्राम में प्रेस के सामने मुख्यमंत्री पर तानाशाहीपूर्ण व्यवहार करने सहित अनदेखी और विकास कार्यों में भेदभाव के गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने चेतावनी भी दी कि मुख्यमंत्री के अड़ियल रुख के चलते अहीरवाल में भाजपा भी उसी तरह खत्म हो जाएगी जिस तरह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के कारण कांग्रेस खत्म हो गयी। लंबे समय से दक्षिण हरियाणा की राजनीति पर मजबूत पकड़ रखने वाले गुरुग्राम के सांसद और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत के समर्थक माने जाने वाले इन नेताओं ने दावा किया है कि लगभग 2 दर्जन असंतुष्ट विधायक उन के सम्पर्क में हैं।

हालांकि यह सब आने वाले चुनावों में ‘पार्टी’ को बरबादी से बचाने के नाम पर किया गया और मुख्यमंत्री ने भीे ‘पार्टी में कोई मतभेद नहीं है’ वाला बयान देकर मामले को हल्का करने की कोशिश की। परंतु राजनीति की समझ रखने वाले जानते हैं कि यह सब राव इंद्रजीत और मुख्यमंत्री के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष का ही एक हिस्सा है। खुद मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले राव अपनी अहमियत दर्शाने और सरकार पर दबाव बनाने के निरंतर प्रयास करते रहे हैं, इस सरकार में भी और पिछली कांग्रेस सरकार में भी। वे समय-समय पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से अपनी नाराज़गी दिखाते रहे हैं। इधर मुख्यमंत्री ने भी इस दबंग नेता से रिश्ते सुधारने की बजाय उन्हें अलग-थलग करने की नीति अपनाई जिससे उनके बगावती तेवर और तीखे हो गए। पिछले दिनों सांसद और पूर्व इनेलो एवं अब जजपा नेता दुष्यंत चौटाला से उनकी मुलाकात के भी गहरे राजनीतिक निहितार्थ निकलते हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि यदि भाजपा के सत्ता में लौटने की संभावना घटती है या सरकार में उन्हें मनवांछित स्थान नहीं मिलता, तो आगामी लोकसभा चुनावों से पहले वे उसी तरह कोई नया धमाका कर सकते हैं जैसे पिछले चुनावों से पहले कांग्रेस को छोड़ कर किया था। गुरुग्राम का ‘ड्रामा’ उनकी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

असल में बात सिर्फ़ भाजपा, राव इंद्रजीत या मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की नहीं है। हमारी राजनीति का चरित्र ही ऐसा है कि केवल सत्ता का उपभोग करना ही इसका ध्येय रह गया है। आज के राजनेता अथवा दल किसी विचार, मिशन या जनसेवा की भावना से संचालित न होकर सत्ता-विमर्श से संचालित हैं। येन-केन-प्राकरेण सत्ता हासिल करना और सत्ता में टिके रहना ही उनका एकमात्र लक्ष्य रह गया है। दूसरे, हर नेता सत्ता पर एकाधिकार चाहता है, सत्ता को बांटना नहीं चाहता। यानी हमारी राजनीति सह-अस्तित्व या सहयोग पर टिके होने की बजाए एकछत्र कब्जे की राजनीति है जिसमें एक गुट को छोड़ कर सब असंतुष्ट रहते हैं। इतना ही नहीं, इसकी वजह से एक नेता का उद्भव दूसरे के पराभव पर टिका होता है। मतलब राजनीति में स्थापित होने के लिए दूसरे को उखाड़ना पड़ता है। यही कारण हैं कि लगातार दल टूटते हैं, लगातार दलबदल होते हैं और नेताओं द्वारा अपनी ही सरकार या पार्टी के खिलाफ़ साजिशें रची जाती हैं। दुष्यंत और अभय चौटाला की राजनीतिक जंग और इनेलो से टूटकर जजपा का गठन इसका ताजा उदाहरण है। बंसी लाल की हरियाणा विकास पार्टी और कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस भी सत्ता संघर्ष में खुद को स्थापित करने की कवायद का ही परिणाम था।

बात अगर भाजपा की करें तो लोकसभा चुनाव से मात्र 6 माह पूर्व मचा यह घमासान पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है। पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में व्याप्त निराशा के चलते विद्रोह के स्वर और मुखर होंगे। सांसद राजकुमार सैनी पहले ही नई पार्टी का गठन कर चुके हैं परंतु भाजपा उनके खिलाफ कोई एक्शन लेने का साहस नहीं कर पाई। अब मेयर चुनावों में उनके उम्मीदवारों के चौकाने वाले प्रदर्शन के बाद तो उनके खिलाफ कार्यवाही करने और मुश्किल हो गया लगता है। सांसद धर्मवीर और रामेश कौशिक का भी मोहभंग हो चुका है। वे भी अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। पार्टी से नाराज चल रहे एक खास तबके की निग्सम चुनावों में कई गई अनदेखी से उस तबके के विधायकों और मंत्रियों में भी असुरक्षा का भाव पनपना लाज़िमी है।

कुल मिलाकर हरियाणा भाजपा और मनोहर सरकार के लिए आने वाला समय कष्टकारी साबित होने वाला है। लोकसभा चुनावों से पहले निःसंदेह पार्टी को कुछ अप्रिय परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।

-अविनाश सैनी

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