बेटियों की निस्बत – अल्ताफ़ हुसैन हाली पानीपती  

ज़ाहलियत के ज़माने में
ये थी रस्मे अरब
के किसी घर में अगर
होती थी पैदा दुख़्तर1
संग दिल2 बाप उसे
गोद से लेकर माँ की
गाड़ देता था ज़मीं में
कहीं जि़न्दा जाकर
रस्म अब भी यही
दुनिया में है जारी लेकिन
जो के अन्धे हैं हिय्ये के
नही कुछ उनको ख़बर
लोग बेटी के लिए
ढूँढते हैं जब पेवन्द
सब से अव्वल उन्हें
होता है ये मन्जूर-ए-नजर
ऐसे घर बिहाइये3 बेटी को
जो हो आसूदा
और महो महर4 से
जो ज़ात में हो अफ़ज़लतर5
जाने पहचाने हों सम्धियाने के
सारे जनों मर्द
उन को मालूम हो
आदातो खसाइल6 यक्सर
एक ही शहर में हों
दोनों घराने आबाद
दोनों नजदीक क़राबत7
में हों बाहम दीगर
जीते जी मर गई बस
उनकी तरफ से गोया
जाके परदेस में बेटी को
दिया ब्याह अगर
छान बीन इसकी तो करते हैं
के घर कैसा हो
पर नहीं देखता ये कोई
के कैसा हो बर8
बदमिज़ाजी हो, ज़हालत हो
के हो बदचलनी
कुछ बुराई नहीं ज़तनवा हो
दामाद अगर
वह यही नाशुदनी रीत हैं
जिस के कारण
बकरियाँ भेडिय़ों से
पाती हैं पेवन्द अक्सर
ज़ाहलियत में तो थी
एक यही आफ़त के वहां
ग़ाड़ दी जाती थी
बस ख़ाक9 में तन्हा दुख़्तर
साथ बेटी के मगर अब
पिदरो10 मादर11 भी
जि़न्दा दा गोर12
सदा रहते हैं और ख़स्ता जिग़र13
अपना और बेटियों का
जब के ना सोचें अन्जाम
ज़ाहलियत से कहीं है
वह ज़माना बदतर

अर्थ

  1. बेटी। 2. पत्थर दिल। 3. विवाह। 4. चांद सूरज। 5. ऊॅचा।  6. आदतें।  7. रिश्तेदारी।  8. दुल्हा। 9. मिट्टी।  10. बाप।  11. मां।  12. कब्र।  13. टूटा दिल।

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