मुनाजात-ए-बेवा – अल्ताफ़ हुसैन हाली पानीपती

मुनाजात-ए-बेवा
(1884)

ए सब से अव्वल1 और आखिर2
जहाँ-तहाँ हाजि़र और नाजि़र3
ए सब दानाओं से दाना4
सारे तवानाओं से तवाना5
ए बाला हर बाला6 तर से
चाँद से सूरज से अम्बर से
ए समझे बूझे बिन सूझे
जाने पहचाने बिन बूझे
सब से अनोखे सब से निराले
आँख से ओझल दिल के उजाले
ए अंधों की आँख के तारे
ए लंगड़े लूलों के सहारे
नातियों से छोटों के नाती
साथियों से बिछड़ों के साथी
नाव जहाँ की खेने वाले
दु:ख में तसल्ली देने वाले
जब, अब, तब तुझ-सा नहीं कोई
तुझ से हैं सब तुझ-सा नहीं कोई
जोत है तेरी जल और थल में
बास है तेरी फूल और फल में
हर दिल में है तेरा बसेरा
तू पास और घर दूर है तेरा
राह तेरी दुश्वार7 और सुकड़ी
नाम तेरा राहगीर की लकड़ी
तू है ठिकाना मिसकीनों8 का
तू है सहारा ग़मगीनों का
तू है अकेलों का रखवाला
तू है अंधेरे घर का उजाला
लागवा अच्छे और बुरे का
ख्वाहां खोटे और खरे का
बैद नवा से बीमारों का
गाहक मन्दे बाज़ारों का
सोच में दिल बहलाने वाला
बिपदा में याद आने वाला
*  *  *
ए बेवारिस घरों के वारिस9
बेबाजू बेपरों के वारिस
बेआसों की आस है तू ही
जागते सोते पास है तू ही
बस वाले हैं या बेबस हैं
तू नहीं जिन का वो बेकस है
साथी जिन का ध्यान है तेरा
दुसरायत10 की वाँ नहीं परवा
दिल में है जिनके तेरी बड़ाई
गिनते हैं वो परबत को राई
बेकस का गमख़्वार है तू ही
बुरी बनी का यार है तू ही
दुखिया, दुखी, यतीम11 और बेवा
तेरे ही हाथ उन सब का खेवा
तू ही डुबोए तू ही तिराए
तू ही ये बेड़े पार लगाए
तू ही मर्ज12 दे तू ही दवा दे
तू ही दवा दारू में शिफ़ा दे
तू ही पिलाए ज़हर के प्याले
तू ही फिर अमृत ज़हर में डाले
तू ही दिलों में आग लगाए
तू ही दिलों की लगी बुझाए
चुमकारे चुमकार के मारे
मारे मार के फिर चुमकारे
प्यार का तेरे पूछना क्या है
मार में भी एक तेरी मज़ा है
*  *  *
ए रहमत और हैबत13 वाले
शफ़क़त14 और दिबाग़त15 वाले
ए अकटल और ध्यान से बाहर
जान से और पहचान से बाहर
अक़ल से कोई पा नहीं सकता
भेद तेरे हुक्मों में है क्या क्या
एक को तूने शाद16 किया है
एक के दिल को दाग़ दिया है
उस से न तेरा प्यार कुछ ऐसा
उस से न तू बेज़ार कुछ ऐसा
हम दम तेरी आन नई है
जब देखो तब शान नई है
याँ पछवा है वाँ पुरवा है
घर घर तेरा हुक्म नया है
फूल कहीं कुम्लाए हुए हैं
और कहीं फल आए हुए हैं
खेती एक की है लहराती
एक का हर दम ख़म सुखाती
एक पड़े हैं धन को डुबोए
एक हैं घोड़े बेच के सोए
एक ने जब से होश संभाला
रंज से उसको पड़ा ना पाला
एक ने इस जंजाल में आकर
चैन ना देखा आँख उठा कर
मेंह कहीं दौलत का बरसता
है कोई पानी तक को तरसता
एक को मरने तक नहीं देते
एक उकता गया लेटे लेटे
हाल ग़रज़ दुनियां का यही है
ग़म पहले और बाद खुशी है
रंज का है दुनिया के गिला17 क्या
तोहफ़ा यही ले दे के है याँ का
याँ नहीं बनती रंज सहे बिन
रंज नहीं सब एक से लेकिन
एक से याँ रंज एक है बाला
एक से है दर्द एक निराला
घाव है गो नासूर की सूरत
पर उसे क्या नासूर से निसबत18
तप वही दिक़ की शक्ल है लेकिन
दिक़ नहीं रहती जान लिए बिन
दिक़ हो वो या नासूर हो, कुछ हो
दे ना जवाब उम्मीद किसी को
रोज़ का ग़म क्योंकर सहे कोई
आस ना जब बाक़ी रहे कोई
तू ही कर इंसाफ़-ए-मौला
कौन है जो बेआस है जीता
गो के बहुत बन्दे हैं पुर अरमाँ
कम हैं मगर, मायूस19 हैं जो याँ
ख़्वाह दुखी है ख़्वाह सुखी है
जो है सब उम्मीद उसको बंधी है
खेतियाँ जिन की खड़ी हैं सूखी
आस वो बांधे बैठै हैं मेंह की
घाटा जिन को असाढ़ी में है
सावनी की उम्मीद उन्हें है
डूब चुकी है जिन की अगेती
देती है ढारस उनको पछेती
एक है इस उम्मीद पे जीता
अब हुई बेटी अब हुआ बेटा
एक को जो औलाद मिली है
उस को उमंग अब शादियों की है
रंज है या िकस्मत में खुशी है
कुछ है मगर एक आस बंधी है
ग़म नहीं उनको, गो ग़मगीं हैं
जो दिल नाउम्मीद नहीं है
काल में कुछ सख्ती नहीं ऐसी
काल में है जब आस समय की
सहल20 है मोजों से छुटकारा
जब के नज़र आता है किनारा
पर नहीं उठ सकती वो मुसीबत
आएगी जिसके बाद न राहत21
शाद22 हो उस राहगीर का क्या दिल
मरके कटेगी जिसकी मंजि़ल
उन उजड़ों को कल पड़े क्योंकर
घर ना बसेगा जिनका जनम भर
उन बिछड़ों का क्या है ठिकाना
जिनको ना मिलने देगा ज़माना
अब ये बला टलती नहीं टाली
मुझ पे है जो तक़दीर ने डाली
आयीं बहुत दुनिया में बहारें
ऐश की घर घर पड़ीं पुकारें
पड़े हैं बहुत बाग़ों में झूले
ढाक बहुत जंगल में फूले
गयीं और आयीं चाँदनी रातें
बरसीं खिलीं बहुत बरसातें
पर न खिली हरगिज़ न खिलेगी
वो जो कली मुरझाई थी दिल की
आस ही का याँ नाम है दुनिया
जब न रही ये ही तो रहा क्या
ऐसे बिदेशी का नहीं ग़म कुछ
जिसको ना हो मिलने की क़सम कुछ
रोना इन बनवासियों का है
देश निकाला जिनको मिला है
हुक्म से तेरे पर नहीं चारा
कड़वी मीठी सब है गवारा
ज़ोर है क्या पत्ते का हवा पर
चाहे जिधर ले जाए उड़ा कर
तिनका एक और सात समन्दर
जाए कहाँ मौज़ों से निकल कर
िकस्मत ही में जब थी जुदाई
फिर टलती किस तरह ये आई
आज की बिगड़ी हो तो बने भी
अज़ल23 की बिगड़ी ख़ाक बनेगी
तू जो चाहे वो नहीं टलता
बन्दे का याँ बस नहीं चलता
मारे और ना दे तू रोने
थपके और ना दे तू सोने
ठहरे बन आती है ना भागे
तेरी ज़बरदस्ती के आगे
तुझ से कहीं गर भागना चाहें
बन्द हैं चारों खूंट की राहें
तू मारे और ख़्वाह नवाज़े
पड़ी हूँ मैं तेरे दरवाज़े
तुझी को अपना जानती हूँ मैं
तुझसे नहीं तो किससे कहूं मैं
माँ ही सदा बच्चे को मारे
और बच्चा माँ माँ ही पुकारे
*  *  *
ए मेरे ज़ोर और कुदरत वाले
हिक़मत24 और हुकूमत25 वाले
मैं लौंडी तेरी दुख मारी
दरवाज़े की तेरे भिखारी
मौत की ख़्वाहाँ26 जान की दुश्मन
जान पे अपनी आप अज़ीरन
अपने पराये की दुतकारी
मैके और सुसराल पे भारी
सह के बहुत आज़ार27 चली हूँ
दुनिया से बेज़ार चली हूँ
दिल पर मेरे दाग़ हैं जितने
मुँह में बोल नहीं हैं उतने
दुख दिल का कुछ कह नहीं सकती
इसके सिवा कुछ कह नहीं सकती
तुझ पे है रोशन सब दुख दिल का
तुझसे हक़ीक़त28 अपनी कहूँ क्या
ब्याह के दम पाई थी न लेने
लेने के याँ पड़ गए देने
खुशी में भी सुख पास न आया
ग़म के सिवा कुछ रास न आया
एक खुशी ने ग़म ये दिखाए
एक हँसी ने गुल ये खिलाए
कैसा था ये ब्याह ननावाँ
ज्यों ही पड़ा उसका परछावाँ
चैन से रहने दिया न जी को
कर दिया मलियामेट खुशी को
रो नहीं सकती तंग हूं याँ तक
और रोऊं तो रोऊं कहाँ तक
हंस हंस दिल बहलाऊं क्यूंकर
ओसों प्यास बुझाऊं क्यूंकर
एक का कुछ जीना नहीं होता
एक न हँसता भला न रोता
लेटिए गर सोने के बहाने
पायेंती कल29 है और न सिरहाने
जागिए तो भी बन नहीं पड़ती
जागने की कोई हद भी होगी
अब कल हम को पड़ेगी मर कर
गोर30 है सूनी सेज से बेहतर
बात से नफ़रत, काम से वहशत31
टूटी आस और बुझी तबीयत
आबादी जंगल का नमूना
दुनिया सूनी और घर सूना
दिन है भयानक रात डरानी
यूँ गुज़री सारी ये जवानी
बहनें और बहनेलियाँ मेरी
साथ की थीं जो खेलियां मेरी
मिल न सकीं जी खोल के मुझसे
खुश न हुई हँस बोल के मुझसे
जब आयीं रो धो के गयीं वो
जब गयीं बेकल हो के गयीं वो
कोई नहीं दिल का बहलावा
आ नहीं चुकता मेरा बुलावा
आठ पहर का है ये जलापा
काटूँगी किस तरह ये रंडापा
थक गई मैं दुख सहते-सहते
थम गए आँसू बहते-बहते
आग खुली दिल की न किसी पर
घुल गई जान अन्दर ही अन्दर
देख के चुप जाना न किसी ने
जान को फूंका दिल की लगी ने
दबी थी भूभल में चिंगारी
ली न किसी ने ख़बर हमारी
क़ौम में वो खुशियाँ ब्याहों की
शहर में वो धूमें साहों की
आए दिन त्यौहारों का आना
और सबका त्यौहार मनाना
वो चैत और फागुन की हवाएँ
वो सावन भादों की घटाएँ
वो गर्मी की चांदनी रातें
वो अरमान भरी बरसातें
किससे कहूँ किस तौर से काटें
ख़र कटें जिस तौर से काटें
चाव के और खुशियों के समें सब
आते हैं खुश, कल जान को हो जब
रंज में हैं सामान खुशी के
और जलाने वाले जी के
घर बरखा और पिया बिदेसी
आई यूँ बरखा कहीं न ऐसी
दिन ये जवानी के कटे ऐसे
बाग में पंछी क़ैद हो जैसे
रुत गई सारी सर टकराते
उड़ न सके पर होते साते
होगी किसी ने कुछ कल32 पाई
मुझे तो शादी रास न आई
आस बंधी लेकिन न मिला कुछ
फूल आया और फल न लगा कुछ
रह गया देकर चाँद दिखाई
चाँद हुआ पर ईद न आई
रुत बदली पर हुई न बरखा
बादल गरजा और न बरसा
फल की ख़ातिर बरछी खाई
फल ना मिला और जान गवांई
रेत में ज़र्रे देख चमकते
दौड़ पड़ी मैं झील समझ के
चारों खूंट नज़र दौड़ाई
पर पानी की बूंद न पाई
*  *  *
ए दीन और दुनियां के मालिक
राजा और प्रजा के मालिक
बेपर और परदार के वाली33
ए सारे संसार के वाली
पूरब, पश्चिम, दक्खिन, उत्तर
बख़शिश34 तेरी आम है घर घर
प्याव लगी है सब के लिए याँ
ख़्वाह हों हिन्दू ख़्वाह मुसलमाँ
हो न अगर िकस्मत ने कमी की
की नहीं बंदी तूने किसी की
चियूँटा, कीड़ा, मच्छर, भुनगा
कछवा, मेंढ़क, सीप और घोंगा
सारे पंछी और पखेरू
मोर, पपीहा, सारस, पीरू
भेड़ और बकरी, शेर और चीते
तेरे जिलाए सब हैं जीते
सब पे खुला है दर रहमत का
बरस रहा है मेंह नेमत का
ख़ाक से तूने बीज उगाए
फिर पौधे परवान चढ़ाए
सीप को बख्शी तूने दौलत
और बख्शा मक्खी को अमृत
लकड़ी में फल तूने लगाए
और कूड़े पर फूल खिलाए
हीरा बख़्शा कान35 को तूने
मुश्क36 दिया हैवान37 को तूने
जुगनू को बिजली की चमक दी
ज़र्रे को कुन्दन की दमक दी
देन से तेरी ए मेरे मौला
सब हैं निहाल अदना38 और आला39
आम है सब पर तेरी रहमत
हैं महरूम मगर बद क़िस्मत
पेड़ हों छोटे या के बड़े याँ
फ़ैज़ हवा का सब पे है यकसाँ
फलते हैं जो हैं फलने वाले
जलते हैं जो हैं जलने वाले
जब अपनी ही ज़मीं हो कल्लर
फिर इल्ज़ाम नहीं कुछ मेंह पर
सब को तेरे इनाम थे शामिल
मैं ही न थी इनाम के क़ाबिल
गर कुछ आता बाँट में मेरी
सब कुछ था सरकार में तेरी
थी न कमी कुछ तेरे घर में
नून को तरसी मैं साँभर में
राजा के घर पली हूं भूकी
सदा बरत से चली हूं भूकी
पहरों सोचती हूं ये जी में
आई थी क्यूँ इस नगरी में
होने से मेरे फायेदा क्या था?
किस लिए पैदा मुझ को किया था?
आन के आख़िर मैंने लिया क्या?
मुझ को मेरी क़िसमत ने दिया क्या?
नैन दिए और कुछ न दिखाया
दाँत दिए और कुछ न चखाया
जिन्दड़ी दी और खुशी न ब$ख्शी
दिल ब$ख्शा, दिल लगी न ब$ख्शी
रही अकेली भरी सभा में
प्यासी रही भरी गंगा में
चैन से जागी और न सोई
मैं न हंसी जी भर के न रोई
आके खुशी-सी चीज न पाई
जैसी आई वैसी न आई
खाया तो कुछ मज़ा न आया
सोई तो कुछ चैन न पाया
फूल हमेशा आँख में खटके
और फल सदा गले में अटके
हो न सकी कुछ दिल से इबादत
और न जमी कामों पे तबीयत
काम संवारा कोई न याँ का
और न किया धन्दा कोई वाँ का
काम आया याँ कोई न मेरे
और न मैं काम आई किसी के
क़िस्मत ने जब से मुंह मोड़ा
आदमियों का हो गया तोड़ा
बाप और भाई, चचा भतीजे
सब रखती हूं तेरे करम से
पर नहीं पाती एक भी ऐसा
जिस को हो मेरी जान की परवा
नातियों में शफ़क़त40 नहीं पाती
अपनों में अपनाइयत नहीं पाती
घर है ये इक हैरत का नमूना
सौ घर वाले और घर सूना
जिसने खुदा का ख़ौफ़41 किया कुछ
आके कभी याँ पूछ लिया कुछ
सो ये खुशी का दिल की है सौदा
ज़ोर किसी पर अब नहीं अपना
इस में शिकायत क्या है पराई
अपनी ही क़िस्मत की है बुराई
चैन गर अपनी बाँट में आता
क्यों तू औरत ज़ात बनाता
क्यूं पड़ते हम ग़ैर के पाले
क्यूँ होते औरों के हवाले
आठ पहर क्यूँ दु:ख ये उठाते
जीते ही जी क्यूँ मर जाते
दुख में नहीं याँ कोई किसी का
बाप न माँ, भाई न भतीजा
सच ये किसी सांई की सदा थी
”सुख सम्पत का हर कोई साथी’’
*  *  *
तेरे सिवा ए रहम के बानी
कौन सुने ये राम कहानी
एक कहानी हो तो कहूँ मैं
एक मुसीबत हो तो सहूँ मैं
हाल ना हो दुश्मन का ऐसा
मेरा नाजुक हाल है जैसा
कोई नहीं लगाव अब मेरा
बाप न भाई, सास न सुसरा
आँख में एक-एक के हूं खटकती
पर अपने बस मर नहीं सकती
माँ और बाप अज़ीज़ और प्यारे
बेकल हैं जीने से हमारे
रो के पलक नम कर नहीं सकती
हंस के ग़लत ग़म कर नहीं सकती
रोइए तो सब रोते हैं घर के
रोने नहीं देते जी भर के
हंसिए तो हंसना ऐब है हम को
क्यूँ कर इलाही काटिए ग़म को
गर सुसराल में जाती हूँ मैं
नहस42 क़दम कहलाती हूँ मैं
मैके में जिस व$क्त मैं आती
रो रो कर हूं सब को रूलाती
ज़ब से ये दिन क़िस्मत ने दिखाए
तकते हैं जो हैं अपने पराए
मेरा सदा हँसना और रोना
बैठना, उठना, जागना, सोना
सोच में मेरा सारा घर है
मेरे चलन पर सब की नजर है
आप को हूँ हर व$क्त मिटाती
पहनती अच्छा मैं न हूँ न खाती
जानती हूँ नाजुक है ज़माना
बात है एक याँ ऐब लगाना
मोती की सी आब है इज़्ज़त
जाके नहीं आती फिर हुरमत43
मेंहदी मैंने लगानी छोड़ी
पट्टी मैंने जमानी छोड़ी
कपड़े महीनों में हूँ बदलती
इत्र नहीं मैं भूल के मलती
सुरमा नहीं आँखों में लगाती
बाल नहीं बरसों गुन्धवाती
दो दो चाँद नहीं सर धोती
अठवारों कंघी नहीं करती
कान में पत्ते हाथ में कंगन
पहन चुकी सब जब थी सुहागन
पोंहचियों का अरमान नहीं अब
चूडिय़ों का कुछ ध्यान नहीं अब
उड़ गयी दिल की सब वो तरंगें
चाव रहे बाकी न उमंगें
आप को याँ तब मैने मिटाया
पर दुनियां को सब्र न आया
वहम ने है एक एक को घेरा
जब देखो तब जि़क्र है मेरा
खींच चुका है मेरा मुक़द्दर44
दाग़ बदी का मेरी जबीं45 पर
मिल जाऊँ गर ख़ाक में भी मैं
बच न सकूँ तानों से कभी मैं
सच अगले लोगों ने कहा है
”बद अच्छा बदनाम बुरा है’’
जीने से घबरा गई हूँ मैं
इस दम से तंग आ गई हूँ मैं
यूँ न बुरी इस जान पे बनती
माँ मुझको ए काश न जनती
रहते हम अंजान बला से
दुनियां मुझसे, मैं दुनियां से
ए बे आसरों के रखवैया!
ऐ डूबे बेड़ों के खवैया!
कीजियो मेरी किश्ती बानी
आ पहुँचा है डुबाऊ पानी
अब तैरेगी तिराई तेरी
डूबी नाव, दुहाई तेरी
ए अम्बर के चमकते तारों!
ए घर के दर और दीवारों!
ए जानी पहचानी रातो!
तन्हाई की डरानी रातो!
ए नेक और बद के दरबानो!
देखती आँखें! सुनते कानों!
एक दिन इस गंदी दुनियां से
जाना है मालिक के आगे
बोझ हैं वाँ सब तुलने वाले
पतरे सब के खुलने वाले
जब वाँ पूछ हो तेरी मेरी
तुम सब दीजो गवाही मेरी
मैं नेकी का दम नहीं भरती
पाकी का दावा नहीं करती
क्यूँकर ख़ता से बच सकता है
जिस ने कच्चा दूध पिया है
ख़्वाह वली हो ख़्वाह ऋषि हो
इस से रिहाई नहीं किसी को
गिनूँ अगर मैं अपनी ख़ताएँ
है ये यक़ीं गिनती में न आएँ
पर ये खुदा से डर के हूँ कहती
मुँह पे ये आए बिन नहीं रहती
ख्वाह बुरी थी ख़्वाह भली मैं
बात से अपनी नहीं टली मैं
पड़ी थी जिस बेदीद46 के पाले
हुई थी जिस बैरी के हवाले
नाम पे धूनी उसके रमा कर
आन को रखा जान को गँवा कर
साथ न देश और क़ौम को छोड़ा
और न खुदा के अहद47 को तोड़ा
आए अगर दुनियां को न बावर48
अब मुझे कुछ दुनियां का नहीं डर
मेरा निगेहबां और रखवाला
सबसे बड़ा है जाननेवाला
*  *  *
ए ईमान के रखने वाले
ए नीयत के परखने वाले
मैं नहीं रखती काम किसी से
चाहती हूँ इंसाफ़ तुझी से
हुक्म पे चलती तेरे अगर मैं
चैन से करती उम्र बसर मैं
मानती गर मैं अकल का कहना
मुझ को न पड़ता रंज से सहना
कुछ न अदालत का था डरावा
और न मज़हब का अटकावा
है दस्तूर यही दुनियां का
आप से अच्छा नाम खुदा का
लेकिन हठ प्यारों की यही थी
मरज़ी ग़मख़्वारों की यही थी
अपने बड़ों की रीत न छूटे
क़ौम की बांधी रस्म न टूटे
हो ना किसी से हम को निदामत49
नाक रहे कुन्बे की सलामत
जान किसी की जाए तो जाए
आन में अपनी फ़र्क न आय
दम पे बने जो उसको सहूँ मैं
लौटती अंगारों पे रहूँ मैं
दर्द न हो दिल का कहीं ज़ाहिर
चुपके ही चुपके काम हो आख़िर
मर मिटूँ और कुछ मुँह पे न लाऊँ
जल बुझूँ और उफ़ करने न पाऊँ
घुट घुट कर दम अपना गवाँ दूँ
जल जल कर आपे को बुझा दूँ
तुझ पे रौशन ऐ मेरे मौला
वक्त ये कैसा मुझ पे पड़ा था
बेड़ा था मझदार में मेरा
चारों तरफ़ छाया था अंधेरा
थाह थी पानी की न किनारा
तेरे सिवा था कुछ न सहारा
शर्म इधर दुनिया की मुझे थी
फ़िक्र उधर उक़बा50 की मुझे थी
रोकते थे हमले मुझे दिल के
था मुझे जीना ख़ाक में मिल के
नफ्स51 से थी दिन रात लड़ाई
दूर थी नेकी पास लड़ाई
जान थी मेरी आन की दुश्मन
आन थी मेरी जान की दुश्मन
आन संभाले जान थी जाती
जान बचाते आन थी जाती
तै करने थे सात समन्दर
हुक्म ये था हाँ पाँव न हों तर
कोयला चारों खूँट था फैला
हुक्म ये था पल्ला न हो मैला
प्यास थी लू थी और थी खरसा
और दरिया से गुज़रना प्यासा
धूप की थी पाले पे चढ़ाई
आग और गंधक की थी लड़ाई
दर्द अपना किस से कहूँ क्या था
आके पहाड़ एक मुझपे गिरा था
नफ़स से डर था मुझको बदी52 का
इसलिए हरदम थी ये तमन्ना
मर जाऊँ या जि़न्दा रहूँ मैं
तुझसे अगर शरमिन्दा न हूँ मैं
जान बला से जाए तो जाए
पर कहीं देनी बात न आए
की न किसी ने मेरी खुशी गो
मैने किया नाखुश न किसी को
बात किसी की मैंने न टाली
अपने ही दम पर सब की बला ली
जान न समझा जान को अपनी
दिया न जाने आन को अपनी
वचन53 पे अपने जमी रही मैं
हुई न डांवाडोल कभी मैं
दिल थामा आपे को संभाला
साँस तलक मुँह से न निकाला
और न अगर करती मैं ऐसा
क्यूँकर करती और करती क्या
बन नहीं आती देस से भागे
कुछ नहीं चलती देस के आगे
कह गई सच एक राजकुमारी
”लाचारी फिर पीत है भारी’’
*  *  *
ए अच्छे और बुरे के भेदी
खोटे और खरे के भेदी
छुपी ढ़की के खोलने वाले
बुरी भली के तौलने वाले
भेद दिलों के जानने वाले
पाप और पुन के छानने वाले
ऐब और गुन तब तुझपे हैं रौशन
पाप और पुन सब तुझपे हैं रौशन
ऐब न अपना तुझको जताना
है दाई से पेट छुपाना
मैं नहीं आख़िर पाक बदी से
बनी हूँ पानी और मिट्टी से
तूने बनाया था मुझे जैसा
चाहिए था होना मुझे वैसा
बस हमें जितना तूने दिया है
उससे सिवा कुदरत हमें क्या है
कान और आँखें हाथ और बाजू
जिन जिन पर था याँ मुझे काबू

सबको बदी से मैने बचाया
सबको खुदी से मैंने मिटाया
उठते बैठते रोका सबको
सोते जागते टोका सबको
हाथ को हिलने दिया न बेजा
पाँव को चलने दिया न टेढ़ा
आँख को उठने दिया न इतना
जिससे कि पैदा हो कोई फ़ितना54
कान को रखा दूर बला से
ओपरी आवाज़ों की हवा से
रोक के यूँ और थाम के आपा
मैने काटा अपना रंडापा
एक न संभला मेरा संभाला
था बेताब55 जो अन्दर वाला
हाल करूँ मैं दिल का बयाँ क्या
हाल है दिल का तुझसे निहाँ56 क्या
धूप थी तेज़ और रेत थी तपती
मछली थी इक इसमें तड़पती
जान न मछली की थी निकलती
और न सर से धूप थी टलती
गो दम भर इस दिल की लगी ने
ठण्डा पानी दिया न पीने
तू है मगर इस बात का दाना57
मैंने कहा दिल का नहीं माना
ज़ोर था मेरा दिल पे जहाँ तक
मैने संभाला दिल को वहाँ तक
थामना दिल का काम था मेरा
और थमाना काम था तेरा
पकड़े अगर तू दिल की ख़ता पर
मैं राज़ी हूँ तेरी रज़ा58 पर
रख तकलीफ़ में या राहत59 में
डाल जहन्नुम60 या जन्नत में
अब न मुझे जन्नत की तमन्ना
और न ख़तरा कुछ दोज़ख़ का
आयेगी जन्नत रास कब उसको
जलने में जिसकी उम्र कटी हो
डर दोज़ख़ का फिर उसे क्या हो
जिसने रंडापा झेल लिया हो
पर तुझसे एक अजऱ् है मेरी
रद्द61 न हो अगर दरगाह में तेरी
जो क़िस्मत ने मुझ को दिखाया
खुश नाखुश सब मैंने उठाया
मुझ नाचीज़ की है क्या ताक़त
जो मुँह पर कुछ लाऊँ शिकायत
उम्र बहुत सी काट चुकी हूँ
ये दिन भी कट जायेंगें ज्यूं त्यूं
अपने लिए कुछ कह नहीं सकती
पर ये कहे बिन रह नहीं सकती
मैं ही अकेली नहीं हूँ दुखिया
पड़ी हैं लाखों पर यही विपता
बसके बहुत याँ उजड़ गए घर
बनके हज़ारों बिगड़ गए घर
जले करोड़ों इसी लपट में
पदमों फेंके इसी मरघट में
बालियाँ एक एक ज़ात की लाखों
ब्याहियाँ एक एक रात की लाखों
हो गई आख़िर इसी अलम62 में
काट गई उम्र इसी ग़म में
सैकड़ों बेचारी मज़लूमें63
भोली, नादानें, मासूमें64
ब्याह से अंजान और मंगनी से
बन्ने से वाक़िफ़65 और ना बन्नी से
माँओं से जो मुँह धुलवाती थीं
रो रो माँग के जो खाती थीं
थपक थपक थे जिनको सुलाते
घुड़क घुड़क थे जिनको खिलाते
जिनको न थी शादी की तमन्ना
और न मंगनी का था तक़ाज़ा
जिनको न आपे की थी ख़बर कुछ
और न रंडापे की थी ख़बर कुछ
भली से वाक़िफ़ थीं न बुरी से
बद से मतलब था न बदी से
रु$ख्सत66 चाले और चौथी को
खेल तमाशा जानती थीं जो
होश जिन्हें था रात न दिन का
गुडिय़ों का सा ब्याह था जिनका
दो दो दिन रह रह के सुहागिन
जनम जनम को हुईं बिरागिन
दूल्हे ने जाना न दुल्हन को
दुल्हन ने पहचाना न सजन को
दिल न तबीयत, शौक़ न चाहत
मुफ़्त लगा ली ब्याह की तोहमत67
शर्त से पहले बाज़ी हारी
ब्याह हुआ और रहीं कुंवारी
सैलानी जब बाग़ में आए
फूल अभी थे खिलने न पाए
फूल खिले जिस व$क्त चमन में
जा सोए सैलानी बन में
प्रीत68 न थी जब पाया प्रीतम69
जब हुई प्रीत गंवाया प्रीतम
होश पहले हुई मैं बेवा
कब पहुँचेगा पार ये खेवा
ख़ैर से बचपन का है रंडापा
दूर पड़ा है अभी बुढ़ापा
उमर है मंजि़ल तक पहुँचानी
काटनी है भरपूर जवानी
शाम के मुरदे का ये रोना
सारी रात नहीं अब सोना
आई नहीं दुनिया में इलाही
ऐसी किसी बेड़े पे तबाही
आयीं बिलकती गयी सिसकती
रहीं तरसती और फड़कती
कोई नहीं जो ग़ौर करे अब
नब्ज़ पे उनकी हाथ धरे अब
दुख उनका आए और पूछे
रोग उनका समझे और बूझे
चोट न जिनके दिल पे लगी हो
वो क्या जानें दिल की लगी को
बेदर्दों से पड़ा है पाला
तू ही अब उनका है रख़वाला
अपनी बीती है ये कहानी
अब ये धान रहे बिन पानी
ऐ ग़मख़्वार70 हर एक बेकस के
हामी71 हर आजिज़72 बेबस के
है अपने आजिज़72 बन्दों पर
प्यार तेरा माँ बाप से बढ़कर
जिस ने लगी में तुझको पुकारा
सामने तेरे हाथ पसारा
फिरा न खाली इस चौखट से
गया न प्यासा इस पनघट से
किसको ज़माने ने है सताया
तू नहीं जिसके आड़े आया
उजड़े खेड़े तूने बसाए
डूबे बेड़े तूने तैराए
मज़लूमों की दाद को पहुंचा
क़ैदियों की फ़रियाद को पहुंचा
बंजर मुल्क आबाद कराए
और बुरदे73 आज़ाद कराए
आम तेरी रहमत जब ठहरी
दूर है रहमत से फिर तेरी
दाद हर एक मज़लूम को दे तू
और रांडों की ख़बर न ले तू
औरत ज़ात का तन्हा जीना
हरदम ख़ूने जिगर का पीना
घर बसने की आस न रहनी
सारी उम्र जुदाई सहनी
है वो बला जो सही न जाए
बिपता है जो कही न जाए
क़द्र उसकी या तू पहचाने
या जिस पर गुज़री हो वो जाने
ए ख़ाविंद74 ख़ुदावन्दों के
मालिक ख़ाविन्द और बन्दों के
वास्ता अपनी ख़ाविन्दी का
सदक़ा अपनी ख़ुदावन्दी का
तू ये किसी को दाग़ न दीजो
किसी को बेवारिस मत कीजो
कीजो जो कुछ तेरी खुशी हो
रांड मगर कीजो न किसी को
मसनद तकिया इज्ज़त हुरमत
नौकर चाकर दौलत हशमत75
चाँदी सोना नक़दी ग़ल्ला
गहना पाता टूम और छल्ला
सांई बिन जो चीज़ है घर में
ख़ाक हैं सब औरत की नज़र में
दिल की ख़ुशी एक आस पे थी सब
सो वो हजारों कोस गई अब
फूल कुछ अब काँटों से नहीं कम
जन्नत भी हो तो है जहन्नुम
बाग़ नज़र में उस की ख़िज़ाँ76 है
आँख में तारीक77 उस की जहाँ है
ऐश है इसके वास्ते मातम
ईद है इसके हक़ में मुहर्रम
जिस दुख़िया पर पड़े ये विपदा
कर उसे तू पेवन्द ज़मीं का
या औरत को पहले बुला ले
या दोनों को साथ उठा ले
या ये मिटा दे रीत जहाँ की
जिससे गई है प्रीत यहाँ की
जिससे हुए दिल सैंकड़ों बिस्मिल78
जिसने हज़ारों कर दिए घायल
जिसने कलेजे आग में भूने
जिसने भरे घर कर दिए सूने
ख़ौफ़ दिलों से खो दिया जिसने
शर्म से दीदे79 धो दिए जिसने
क़ौम की जिस बिन आन है जाती
देस की जिस बिन जान है जाती
जिसने किए दिल रहम से ख़ाली
रीत है जो दुनिया से निराली
क़ौम से तू ये रीत छुड़ा दे
बंदियों को बेड़ी से तू छुड़ा दे
सहल80 और मुश्किल तुझको है यकसाँ
हमको मुश्किल है तुझको आसाँ
रंज और दुख कब्ज़े में है तेरे
चैन और सुख कब्ज़े में है तेरे
हिलते हैं पत्ते तेरे हिलाए
खिलते हैं गुंचे तेरे खिलाए
मुट्ठी में है तेरे हवाएँ
काबू में हैं तेरे घटाएँ
तुझ से है दरियाओं की रवानी
तेरे बहाए बहते हैं पानी
झील, समन्दर, परबत, राई
कहने में है सब तेरी ख़ुदाई
नाता, रिश्ता, निस्बत, शादी
सोग, रंडापा, क़ैद, आज़ादी
क़ौम की रीतें, देस की रस्में
क्या है वो जो तेरे नहीं वश में
काम कोई मुश्किल नहीं तुझको
एक ये क्या, गर तेरी खुशी हो
सोत लगे पत्थर से निकलने
नाव लगे रेती में चलने
*  *  *
ए इज़्ज़त और अज़मत81 वाले
रहमत और अदालत82 वाले
दुखड़ा तुझसे कहना दिल का
एक बशरियत83 का है तक़ाज़ा
दिल पे है जब बरछी कोई चलती
आह कलेजे से है निकलती
जब कोई दुख याद आ जाता है
जी बेसाख़्ता84 भर आता है
वरना है इस दुनियां में धरा क्या
ख्वाब का सा है इक ये तमाशा
दुख से है याँ के घबराना क्या
सुख पे है याँ के इतराना क्या
ऐश की याँ मोहलत85 है न ग़म की
सब ये नुमायश है कोई दम की
आनी जानी चीज़ हैं खुशियाँ
चलती फिरती छाँव हैं अरमाँ
मंगनी, ब्याह, बरात और रुख़सत
मेल मिलाप, सुहाग और संगत
हैं दो दिन के सब बहलावे
आगे चलकर हैं पछतावे
रेत की सी दीवार है दुनियां
ओछे का सा प्यार है दुनियां
बिजली जैसी चमक है इसकी
पल दो पल की झलक है इसकी
पानी का सा है ये पुचारा
जुगनू का सा है चमकारा
आज है याँ जंगल में मंगल
कल सुनसान पड़ा है जंगल
आज है मेला हरदम दूना
और कल गाँव पड़ा है सूना
जो ब्याहे वो हैं पछताते
बिन ब्याहे हैं ब्याह मनाते
इस फल का है यही परीखा
जो नहीं चक्खा वही है मीठा
ख़ुश न हो ख़ुशियों के मतवाले
हैं ये नशे सब उतरने वाले
ग़म की घटा आती है गरजती
घड़ी में याँ घडिय़ाल है बजती
राहगीरों का बंधा है तांता
एक आता है एक है जाता
जो आए हैं उनको है जाना
जो गए उनको फिर नहीं है आना
ख़्वाह हों राँड और ख़्वाह सुहागन
मौत है सबकी जान की दुश्मन
एक है गो आज एक से बेहतर
मर गयीं जब दोनों हैं बराबर
और कोई गर इंसाफ़ से देखे
मरके उसे निसबत नहीं इससे
ऐश गई वो छोड़ के याँ से
क़ैद गई ये काट के याँ से
इसको पड़ी कल उसकी गई कल
ये गई हल्की वो गई बोझिल
उसका दिल इस दुनियां से उठाना
है नाख़ून से गोश्त छुड़ाना
जान ये आसाँ देती है ऐसे
बू है निकलती $फूल से जैसे
ग़म हो ग़रज़ या ऐश हो कुछ हो
है हमें जाना छोड़ के सबको
तेरे सिवा याँ ए मेरे मौला
कोई रहा है और न रहेगा
पड़ी थी सूनी जब ये नगरिया
तेरी ही थी याँ खड़ी अटरिया
फिर ये नगरिया उजड़ के सारी
तेरी ही रह जाएगी अटारी
था न कुछ आगे तेरे सिवा याँ
और रहेगा कुछ न सदा याँ
याँ कोई दिन दुख पाया तो क्या
और कोई दम सुख पाया तो क्या
अब न मुझे कुछ रंज की परवा
और न आसाइश86 की तमन्ना
चाहती हूँ एक तेरी मोहब्बत
और नहीं रखती कोई हाजत87
घूँट एक ऐसा मुझ को पिला दे
तेरे सिवा जो सबको भुला दे
आए किसी का ध्यान न जी में
कोई रहे अरमान न जी में
फ़िक्र हो अच्छी की न बुरी की
तेरे सिवा धुन हो न किसी की
कोई जगह इस दिल में न पाए
याद कोई भूले से न आए
सीना ये तुझसे भरा हो सारा
मीत समाए इसमें न प्यारा
दिल ने बहुत याँ मुझको सताया
मौत का बरसों मज़ा चखाया
ख़्वाब में देख एक स्वाँग निराला
आग में जीते जी मुझे डाला
मेरा और अपना चैन गंवाया
आप जला और मुझको जलाया
उठ नहीं सकते मुझसे अब एकदम
ये दुनिया के नाशुदनी88 ग़म
दिल में लगन बस अपनी लगादे
सारे ग़म अपने ग़म में खपादे
ग़ैर के रिश्ते तोड़ दे सारे
दिल के फफोले फोड़ दे सारे
जब मुझे तन्हा किया है पैदा
तो मुझे बंधवा कर न किसी का
वाँ से अकेली आयी हूँ जैसी
वैसी ही याँ से जाऊँ अकेली
साथ कोई ग़म ले के न जाऊँ
तेरे सिवा खो दूँ जिसे पाऊँ
दिल ने फिरे दुनिया में भटकता
कोई रहे काँटा न खटकता
जी से निशां प्यारों का मिटा दूँ
प्यार के मुँह को आग लगा दूँ
तू ही हो दिल में तू ही जुबां पर
मार के जाऊँ लात जहाँ पर
पाऊँ तुझे एक एक को गँवा कर
ख़ाक89 में जाऊँ सब को मिला कर
*  *  *

अर्थ

(मुनाजाते बेवा- विधवा की प्रार्थना)
1. प्रथम। 2. अन्तिम।3. दृष्टा।  4. विद्वान।  5. ताकतवर।  6. ऊंचा। 7. मुश्किल।  8. कंगाली से निढाल। 9. उत्तराधिकारी।  10. शत्रुता।  11. अनाथ।  12. रोग। 13. रौब।  14. प्रेम।  15. सजा देना।  16. प्रसन्न। 17. शिकायत।  18. लगाव। 19. निराश। 20. आसान।  21. आराम।  22. प्रसन्न। 23. अनादि। 24. बुद्धिमता।  25. राज।  26. चाहने वाली। 27. दुख।    28. सच्चाई। 29. चैन।  30. कब्र।  31. भड़क। 32. आराम। 33. स्वामी।  34. मेहरबानी। 35. खान।  36. कस्तूरी।  37. जानवर।  38. छोटा।  39. छोटा।

  1. प्रेम। 41. डर। 42. मनहूस। 43. इज्जत। 44. भाग्य।  45. माथा। 46. बिना देखे।  47. वचन।
  2. यकीन। 49. शर्मन्दगी। 50. मुश्किल घाटी (मृत्यु के बाद)। 51. जान (स्वयं)। 52. बुरी। 53. वचन।
  3. झगड़ा। 55. बेचैन। 56. छिपा हुआ। 57. ज्ञाता।  58. मर्जी। 59. आराम।  60. नर्क।  61. वापसी।
  4. दुख। 63. पीडि़त। 64. निर्दोष।  65. जानकार।  66. विदाई। 67. इल्जाम।  68. प्रेम।  69. प्रेमी।
  5. $गम खाने वाला। 71. समर्थक। 72. लाजार। 73. गुलाम। 74. मालिक। 75. रौब।  76. पतझड़।  77. अंधेरा। 78. घायल।  79. आँख।  80. आसान। 81. बड़ाईं।  82. न्याय।  83. मानवता। 84. बे बनावट।  85. फुरसत। 86. ऐशो आराम। 87. जरूरत।  88. अनहोनी। 89. मिट्टी।

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