कृष्णस्वरूप गोरखपुरिया
अभी 19 दिसंबर को घोषित नगर निगम मेयरों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों की पांचों स्थानों पर जीत हुई है और इस जीत पर भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं का खुश होना भी स्वभाविक है। परंतु मीडिया के एक हिस्से ने इन चुनाव परिणामों को इस रूप में प्रस्तुत किया है कि मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुलदीप बिश्रोई, शैलजा और अभय सिंह चौटाला के सभी किले तोड़ दिए हैं, जोकि पूर्णतया सही नहीं है। यह सही है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत हुड्डा, शैलजा, कुलदीप बिश्रोई और अभय सिंह चौटाला की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर थी और अगर इसका गहराई से मूल्यांकन किया जाए तो इन चुनावों के परिणामों ने उपरोक्त सभी नेताओं की प्रतिष्ठा पर आंच पहुंचाई है।
क्या हुड्डा, शैलजा, कुलदीप बिश्रोई व अभय चौटाला के यह गढ़ थे
आज से चार साल पूर्व हुए विधानसभा के चुनावों में इन सभी पांचों निगमों में भाजपा के उम्मीदवार अच्छे वोट लेकर जीते थे। अगर किसी की राजनीतिक ताकत पर सबसे ज्यादा चोट लगी है तो वह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर है। उनकी विधानसभा क्षेत्र करनाल में, जहां से वे 60 हजार से ज्यादा वोट लेकर जीते थे, पर विपक्ष के उम्मीदवार आशा वधवा को बीजेपी उम्मीदवार बड़ी मुश्किल से नौ हजार वोटों से हरा पाया। वहां पर खट्टर के उम्मीदवार की जीत मुख्यमंत्री बनने के बाद खट्टर शब्द को त्यागने वाले मुख्यमंत्री ने पंजाबी समुदाय के लोगों से यह भावपूर्ण अपील की कि अगर करनाल का चुनाव हार गए तो आने वाले 60 वर्षों में कोई भी पंजाबी मुख्यमंत्री नहीं बन पाएगा। क्या यह अपील किसी मुख्यमंत्री को शोभा देती है।
अशोक तंवर की नगर निगम चुनावों में भूमिका
हरियाणा कांग्रेस के प्रधान अशोक तंवर ने आज यह कहा है कि कांग्रेस इसलिए हार गई, क्योंकि कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों के पास कांग्रेस का चुनाव चिह्न नहीं था। अशोक तंवर को यह याद रखना चाहिए चार साल पहले विधानसभा में और साढ़े चार साल पहले लोकसभा में तंवर सहित सभी कांग्रेसी उम्मीदवारों के पास कांग्रेस का चुनाव चिह्न था, फिर भी वे हार गए थे। तंवर के सिरसा लोकसभा क्षेत्र के कस्बा जाखल में नगर पालिका के पार्षदों के सभी स्थानों पर भाजपा के सभी उम्मीदवारों को पूर्व मंत्री सरदार परमवीर सिंह के समर्थित उम्मीदवारों ने हरा दिया। यही हाल पुंडरी में हुआ है, जहां भाजपा की भारी फजीहत हुई है। असल में अशोक तंवर के लोग कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों की हार पर काफी खुश दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि अशोक तंवर ने तो पहले ही रोहतक में भूपेंद्र सिंह हुड्डा समर्थित उम्मीदवार सीताराम सचदेवा और हिसार में कुलदीप बिश्रोई व सावित्री जिंदल द्वारा समर्थित उम्मीदवार रेखा ऐरन को कांग्रेसी उम्मीदवार न होने की सार्वजनिक घोषणा करते हुए इन उम्मीदवारों को पार्टी की बजाए व्यक्तिगत उम्मीदवार कहा था। यह सही है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुलदीप बिश्रोई और शैलजा जैसे राज्य स्तर के प्रमुख नेता होने के बावजूद चुनावी अभियान के दौरान उन्होंने वांछित भूमिका अदा नहीं की और यही कारण कि जितना इनके अभियान से भाजपा उम्मीदवारों को नुकसान हो सकता था, वह नहीं हुआ।
जाट आरक्षण आंदोलन का इन चुनावों पर प्रभाव
जाट आरक्षण आंदोलन में हुई हिंसा, तोडफ़ोड़, लूटपाट के लिए भाजपा सहित कई दूसरे नेताओं ने भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को दोषी ठहराया था, जिसका रोहतक के चुनावों में साफ असर दिखाई दिया, जहां पर अभय सिंह चौटाला के उम्मीदवार संचित नांदल ने 32 हजार वोट हासिल किए, जिनमें प्रमुख हिस्सा जाटों का है और बीएसपी के समर्थन से दलितों का भी एक भाग इनेलो के उम्मीदवार को मिला है। यह भी सही है कि जाट समुदाय के लोगों ने बड़ी संख्या में भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ मतदान किया है और इसी प्रकार मुख्यमंत्री महोदय की अपील के बाद पंजाबी समुदाय के लोगों ने भी भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में वोट डाले हैं। हिसार और रोहतक का एक भी गांव नहीं है, जहां पर भाजपा के उम्मीदवार जीता हो। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि रोहतक और हिसार की जाट लैंड को फतेह करने का भाजपा का दावा सही नहीं है। खट्टर की अपील के बाद जो खारापन हरियाणा के आम समाज में पैदा हुआ है, उसके दुष्प्रभाव लंबे समय तक जनता में देखने को मिलेंगे।
हरियाणा की भावी राजनीति पर प्रभाव
यह सही है कि पांचों नगर निगमों में भाजपा की बड़े शहरों में ताकत अभी भी कायम है। अभी हाल में मध्यप्रदेश व राजस्थान विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने शहरी सीटें काफी तादाद में जीती हैं, लेकिन हरियाणा के विपक्षी दलों ने इन नगर निगमों के चुनावों में भी भाजपा को हराने के गंभीर प्रयास नहीं किए। केवल एक स्थान पर इनेलो और बीएसपी गठबंधन ने इनेलो की पूर्व में रही डिप्टी मेयर आशा वधवा को मुख्यमंत्री खट्टर के क्षेत्र में आजाद उम्मीदवार के तौर पर खड़ा किया, जिसे भूपेंद्र सिंह ने भी अपना समर्थन दिया। यह अभय सिंह चौटाला की दूरदर्शिता थी। वहीं दो स्थानों पर बीएसपी इनेलो गठबंधन तीसरे स्थान पर रहकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। दूसरी तरफ दुष्यंत चौटाला और अशोक तंवर के समर्थकों की इन चुनावों के परिणामों पर प्रकट हो रही खुशी आने वाले 2019 के लोकसभा चुनावों को लेकर बहुत कुछ कह रही है। यह भी सही है कि प्रमुख विपक्ष के तौर पर पांचों नगर निगमों में वह उम्मीदवार मुकाबले में आए हैं, जिनका समर्थन भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने किया है। इसलिए आगामी चुनावों में भाजपा, कांग्रेस, इनेलो-बसपा के बीच तिकोना मुकाबला होने की संभावनाएं हैं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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