अविनाश सैनी
सारे पूर्वानुमानों को धत्ता बताते हुए भाजपा ने हरियाणा के 5 नगर निगमों के लिए हुए चुनावों में बड़ी जीत दर्ज की है। हिसार, यमुनानगर, करनाल, पानीपत और रोहतक नगर निगमों के इन चुनावों में भाजपा ने मेयर के पांचों पद अपने नाम कर राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में हुई पार्टी की हार का अपने कैडर पर असर राज्य में नहीं पड़ने से बचा लिया है। चुनाव परिणामों से जहां भाजपा को नई ऊर्जा मिली है, वहीं कांग्रेस व अन्य विपक्षी पार्टियों को इससे करारा झटका लगा है।
पार्टी की भारी जीत से उत्साहित भाजपा नेताओं ने इसे सरकार की 4 साल की उपलब्धियों पर जनता की मोहर बताते हुए जीत का श्रेय मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को दिया है। चुनाव से पूर्व आम चर्चा थी कि हरियाणा में भाजपा की स्थिति खराब हो चुकी है और निगम सहित आगामी सभी चुनावों में पार्टी को हर का मुंह देखना पड़ेगा। परंतु अनुभवहीन माने जा रहे मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई में पार्टी इस अग्निपरीक्षा में सफल रही। सरकार ने मेयर के प्रत्यक्ष चुनाव करवाकर जो दाव खेला वह भी कारगर साबित हुआ।
भाजपा नेताओं ने यह चुनाव पूरी तरह एकजुट होकर लड़ा, जबकि कांग्रेस और इनेलो को पार्टी की फूट का खामियाजा भुगतना पड़ा। कांग्रेस को अपने चिह्न पर चुनाव न लड़ने और नेताओं की आपसी फूट तथा इनेलो को पार्टी की टूटन का काफी नुकसान हुआ लगता है।
इन चुनावों में एक बात और साफ हो गई कि अभी हरियाणा में जात-पांत की राजनीति खत्म होने वाली नहीं है। ‘विकास’ और देशहित तथा जनहित का ढिंढोरा पीटने के बावजूद पार्टियां अन्ततः जाति कार्ड के सहारे ही चुनावी वैतरणी पार लगाने में विश्वास रखती हैं। ‘ हरियाणा एक, हरियाणवी एक ‘ का नारा देने वाली पार्टी ने मौका पाते ही अपने इस नारे की धज्जियां उड़ा दी और जमकर जाति कार्ड खेला। परंपरागत पंजाबी वोटों में बिखराव रोकने के लिए खुद मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं भी पंजाबी हूं। यही नहीं, पंजाबी मुख्यमंत्री के नेतृत्व पर संकट दिखाकर सहानुभूति हासिल करने के लिए करनाल में तो अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन ही दे दिया, जिसका फायदा भी मिला और जिसकी खूब आलोचना भी हुई। नतीजों के बाद इस पर खेद जताने की बजाय इसे प्रत्याशी का अपना चुनाव प्रचार का तरीका कहकर इस पर अपनी सहमति भी दे ही दी।
चुनावों में भाजपा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जातीय समीकरणों को साधने और जातीय एवं सामुदायिक ध्रुवीकरण करने में उसका कोई सानी नहीं है। इधर रोहतक में मंत्री मनीष ग्रोवर ने पंजाबी समुदाय में जाट आरक्षण की हिंसा को जमकर उछाला और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की और इशारा करते हुए कहा कि जिन लोगों ने आपकी दुकानें जलाई, वही अब आपसे वोट मांग रहे हैं। इतना ही नहीं, यहां जाट वोटरों की अच्छी खासी संख्या होने के बावजूद भाजपा ने 22 में से एक वार्ड में भी जाट प्रत्याशी नहीं उतारा ताकि गैर जाट वोटरों का ध्रुवीकरण किया जा सके। इन सब तरीकों का कारगर असर हुआ और मेयर पद के उम्मीदवार मनमोहन गोयल लगभग हर वार्ड में बढ़त बनाते हुए 14000 से अधिक मतों से जीतने में कामयाब रहे जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा समर्थित पंजाबी प्रत्याशी सीताराम सचदेवा पंजाबी बहुल इलाकों में भी पिछड़ गए। इसी तरह इनेलो ने रोहतक में मेयर के लिए जाट प्रत्याशी मैदान में उतारा और पार्टी जाट वोटों के ध्रुवीकरण में सफल रही।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने जाट वोट बैंक पर भरोसा करते हुए भाजपा के बनिया प्रत्याशी के खिलाफ पंजाबी सीताराम सचदेवा को समर्थन दिया ताकि पंजाबी-जाट जुगलबंदी के सहारे फिर से रोहतक की चौधर हासिल कर पाएं। पर शायद उनके प्रत्याशी को जाट आरक्षण की हिंसा को लेकर भाजपा के प्रचार का खमियाजा भुगतना पड़ा। उन्हें न पंजाबियों का समर्थन मिला, न जाटों का। उनकी हार से संकेत मिलता है कि शायद अभी यहां पंजाबी और जाट बिरादरी के लोग चुनावी राजनीति में दिल से एक साथ आने की स्थिति में नहीं हैं। रोहतक की हार भूपेंद्र सिंह हुड्डा की बड़ी राजनीतिक शिकस्त है। निःसंदेह भविष्य में भी उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।
जातिगत राजनीति की बात सांसद राजकुमार सैनी का जिक्र किये बिना खत्म नहीं हो सकती। 35 बिरादरी बनाम एक की बात करने वाले सैनी ने भी निगम चुनावों में मेयर पद के प्रत्याशियों को समर्थन दिया था। लगभग सब स्थानों पर कुछ कुछ पार्षदों को भी उनका समर्थन मिला। अधिकतर लोग मानते रहे हैं कि हरियाणा में उनका कोई भविष्य नहीं है। परंतु इन चुनावों ने इस आकलन को गलत साबित कर दिया। पानीपत में उनकी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी द्वारा समर्थित सीमा सैनी तीसरे स्थान पर रही हैं। रोहतक में भी उनके प्रत्याशी अरविंद जोगी स्थानीय स्तर के एक प्रभावशाली नेता की नाराजगी और उसके पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो जाने के बावजूद चौथे स्थान पर रहे। करनाल, हिसार और यमुनानगर में भी उनके प्रत्याशी प्रभावशाली उपस्थित दर्ज करवाने में सफल रहे। उनके समर्थक पार्षद भी लगभग हर जगह जीते हैं। गैर जाट, विशेषकर पिछड़े वर्गों में उनका प्रभाव साफतौर पर देखा जा सकता है। जाहिर तौर पर उनको हल्के में लेना कांग्रेस, भाजपा दोनोँ के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
विडम्बना की बात यही है कि जनता भी रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के आधार पर निर्णय लेने की बजाय जात की राजनीति में ही उलझ कर रह जाती है।इन चुनावों से संकेत मिलता है कि प्रदेश में जाति और वर्गों के बीच की खाई और गहरी हुई है। अपने निहित स्वार्थों के लिए राजनीतिक दल, जिनमें भाजपा प्रमुख है, इस खाई को निरंतर गहरा कर रहे हैं। इसके चलते शायद ही निकट भविष्य में हरियाणा को जातिवाद की राजनीति से छुटकारा मिल पाए !
इन चुनावों से सहज ही कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी की गुटबंदी उसके लिए आत्मघाती कदम है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को अपने ही गढ़ में करारी हार से स्वाभाविक है कि पार्टी नेतृत्व के लिए उनके मुखर दावे के स्वर तो मंद पडेंगे ही दूसरी ओर मुख्यमंत्री मनोहर लाल की स्वयं की हल्के करनाल में भाजपा द्वारा जीत के लिए समस्त हथकंडे अपनाने के बाद भी बहुत कम अंतर से जीत मिली है, इससे मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व पर सवाल उठाने वालों के पास उनकी आलोचना करने का एक मुद्दा तो रहेगा ही।