रंग तो सबके लहू का लाल है- विक्रम राही

विक्रम राही
रंग तो सबके लहू का लाल है
हड्डियां भी वही हैं वही खाल है।
कौम मजहब पर लाता है कौन
समझ लीजिए किसकी चाल है ।
कठपुतली बने हो सदियों से तुम
किन हाथों में है डोर ये सवाल है।
तु हिन्दू वो मुसलमां ये सिख इसाई
आदमी है समझ ये क्या जंजाल है ।
ओ मजहब के भड़कते शोले बता
बाप कैसे मरा और मां किस हाल है।
इन दंगों में जो मरा वो भी जवां था
भगतसिंह के बारे में क्या ख्याल है।
मेरा तेरा जो गांव है वहां हकीकत है
खेत खलिहान मेहनत से निहाल है।
रह रहे थे गांव में सभी अमन के साथ
महज टी.वी. पर सुना कि भूचाल है ।
बेटी बचाओ कहने से वो बच गई क्या
जमीन पर भी आइए कि क्या हाल है ।
सच कहना भी तो गुनाह हो गया यहां
वो पूछते हैं अक्सर कि ये क्या बवाल है।
आदमी है आदमी की बात करना सीख
“राही” जिंदगी का यही सुर यही ताल है ।

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One Comment

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  • Anonymous

    December 20, 2018 / at 10:50 amReply

    बहुत खूब विक्रम भाई

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