ज़माने में नया बदलाव लाने की ज़रूरत है,
अकीदों का सड़ा मलबा उठाने की ज़रूरत है।
उजालों के तहफ्फुज में कभी कोई न रह जाए,
अंधेरों को सिरे से अब मिटाने की ज़रूरत है।
हमें जो आज तक भटका रहे थे रहनुमा बनकर,
अब उनसे कारवां अपना बचाने की जरूरत है।
गरीबी से गुज़करना मुकद्दर तो नहीं अपना,
हमें अब मुफलिसी अपनी मिटाने की ज़रूरत है।
बुझानी है हमें गर तश्नगी धरती के कण-कण की,
तो फिर सहराओं में दरिया बहाने की ज़रूरत है।
हमारे काम आया है जो हर अच्छे बुरे पल में,
अब उसका साथ जीवनभर निभाने की ज़रूरत है।
हमारी गुमरही मजबूर करती है, भटकने पर,
मगर अंधे सफर को अब ठिकाने की ज़रूरत है।
जहां इक-दूसरे से लोग दिल से प्यार करते हों,
हमें ऐसी जमीं, ऐसे जमाने की ज़रूरत है।
बहुत रो धो लिए लेकिन, न हाथ आया हमारे कुछ,
कि अब तो हाले-दिल पर मुस्कराने की ज़रूरत है।
नहीं जीवन का मकसद धन कमाना और मर जाना,
जहां में नेकनामी भी कमाने की ज़रूरत है।
हमारी उम्र कटती है ‘दुखी’ अश्कों को पी-पी कर,
खबर उस बेखबर को ये सुनाने की ज़रूरत है।
गांव सुदकैन कलां, तह. नरवाना, जींद-94169-67861