दुख कोई चिड़िया तो नहीं

डॉ. विजय विद्यार्थी

जब भी कोई दुख पहुँचता है अमित मनोज यह गीत गाता है ‘दुख कोई चिड़िया तो नहीं’ यह अभिव्यक्ति न सिर्फ कवि के दुखी या उदास मन की पराकाष्ठा है अपितु समाज के जख्मों पर मरहम लगाने और घावों को भरने की पुरजोर चेष्टा है। यह कवि के हृदय से निकली एक अन्तर्ध्वनि है जो समाज से संघर्ष की राह पर चलने का आह्वान करती है। इस आवाज को सुनकर कौन ऐसा है जो उसके दुख में शामिल न हो जाए। अमित मनोज का दूसरा कविता संग्रह ‘दुख कोई चिड़िया तो नहीं’ कविता सृजन की ऊष्मा के एक ऐसे विराट विस्फोट की कामना करता है, जिसमें सृजन की ताकत पूरे विश्व में इस तरह बिखर जाए मानो किसान ने खेतों में बीज बिखेरे हों।

‘कठिन समय में कविता’ के बाद अमित मनोज ने ‘दुख कोई चिड़िया तो नहीं’ दूसरा काव्य संग्रह पाठकों को दिया है। अमित मनोज समकालीन युवा कविता का ताजा-तरीन चेहरा है। उसकी कविताएं वर्तमान समय की बेचैनी से भरी कविताएं हैं। एक ऐसे समय में जहां सारे जीवन-मूल्य और फर्ज बाजार के आक्रमण के सामने बार-बार पराजित होते महसूस हो रहे हैं। ऐसा ही संदेश ‘यह कैसी इच्छा है’ कविता में मिलता है

यह कैसी इच्छा है
जब पानी से बुझे न प्यास तो
खून पीना शुरू कर दें
और भूख भी मिटाएँ तो
माँस के टुकड़ों से ही

यह कैसी इच्छा है कि
जीभ को डसवाना चाहें साँपों से
और जिसको भी करें प्यार
उसी के शरीर में फैला दे जहर।

इन कविताओं में वर्तमान भूमण्डलीकरण से उपजे बाजार की आलोचना है। सूक्ष्म अंतर्दृष्टि और गहरे भावनात्मक प्रवाह के धनी कवि अमित मनोज की कविताएं गहरी संवेदनाओं से परिचय कराती हैं। जिए हुए और जिए जा रहे अपने वक्त का साक्ष्य उनकी कविता में दिखाई देता है जो सिर्फ कविता को बयान नहीं बल्कि उसकी अंतर्ध्वनियों को भी चिन्हित करती जाती है। कुछ ऐसा ही प्रमाण ‘चींटियाँ’ कविता देती है

चींटियाँ आवाज नहीं करती
पर धरती की सब आवाजें सुनती हैं
चींटियों में सूँघने की शक्ति बड़ी तेज है
वे कहीं भी पहुँच जाती हैं
नए रास्ते बनाती हुई
चींटियाँ जिद्दी हैं
वे जानती हैं कि
जिद्द करने से दुनिया बदलती है।

इस काव्य संग्रह की कविताएं सत्य से साक्षात्कार करवाती हैं। सच्चाई को स्वीकार करने की प्रेरणा देती हैं। दुख का धैर्य और साहस के साथ मुकाबला करना सिखाती हैं। ‘दुख कोई चिड़िया तो नहीं कविता कुछ ऐसा ही संदेश देती है

दुख कोई चिड़िया तो नहीं
कि एक बार भागे तो
फिर लौटे ही न
चला जाए दूर जंगल-बियाबान में
कर ले नफरत आदमी से
और भूलकर भी दिखाए न शक्ल उसे
दुख लौटता है बार-बार
रहता है हमारे भीतर घोंसला बना
उड़ता है जब-तब यहाँ से वहाँ।

कवि विकास के नाम पर हो रहे विनाश पर बहुत सारे सवाल खड़े करता है। विकास की बहुत सी परियोजनाएँ मानवीय अधिकारों का हनन करती हैं और मानवीय अधिकारों पर अंकुश लगाती हैं। कवि सवाल पूछता है कि क्या विकास को विनाश की नींव पर ही खड़ा करना लाजिमी है। ऐसे बहुत से सवालों के जवाब हमें और आपको देने होंगे

हमने पेड़ काटे गिलहरियां मारी
चिड़ियों को घोंसलों से भगाया
और विकास की नई इबारतें लिखी।

प्रस्तुत काव्य संग्रह की कविताएं हमारी वास्तविकताओं और सपनों का आख्यान हैं। ये किसी हताशा, निराशा की नहीं अपितु उम्मीद की कविताएं हैं। कवि की निगाह उन लोगों की तरफ भी है जो उम्मीद की लौ को अपनी हथेलियों में सहेजे हुए हैं, ऐसे लोगों पर कवि को पूरा भरोसा है। ऐसी सकारात्मक सोच का प्रमाण देती हैं कविता ‘मछलियाँ’

मछलियाँ जब भी प्यार करती हैं
मछुआरे बीच में आ जाते हैं
मछलियाँ जब भी प्यार करती हैं
मछुआरे तालाब का सारा पानी सोख लेते हैं
मछलियाँ तड़फ-तड़फ कर मर जाती हैं।
पर प्यार करना नहीं छोड़ती।

समय का सोपान धीरे से बढ़ जाता है और कविता उस राह में रचने, बसने को फिक्रमन्द रहती है। ‘दुख कोई चिड़िया तो नहीं’ संग्रह एक बेहतर दुनिया की तलाश है। इस दुनिया में प्रेम और संघर्ष का होना परस्पर जरूरी है। संघर्ष अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए आवश्यक है और प्रेम जीवन में रोमानियत भरता है। हालांकि कवि देश की खाप पंचायतों और जातिवाद की नफरत से काफी डरा हुआ भी है। इसका उदाहरण ‘यह वक्त घर लौटने का है’ कविता में मिलता है

यह वक्त घर लौटने का है
साबुत किसी भी तरह बच-बचाकर
कि जी जा सके एक दिन और
जैसी भी है यह दुनिया।

ऐसी ही घबराहट कवि की ‘चिड़िया’ नामक कविता में देखने को मिलती है। जो हरियाणा की खाप पंचायतों के संदर्भ में लिखी गई। समकालीन कविता के विहंगम परिदृश्य में यथार्थवादी कविता की अपनी एक स्वतन्त्रा परम्परा रही है और इसी परम्परा का निर्वाह करते हुए कवि ने इस काव्य संग्रह को पूरा किया है।

जाने कितनी बार चिड़िया के पंखों को
सरेआम उखाड़ा है बाजों ने
कितनी बार चिड़िया का गला घोंटा गया है
और कितनी बार चिड़िया के खून से यह धरती रंगी है।

अमित मनोज के काव्य संग्रह का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा छोटी कविताओं का है। दरअसल यह इस संग्रह का बेहद समृद्ध इलाका है। इन छोटी कविताओं को क्षणिकाएं भी कहा जा सकता है। जो एक कंटीन्यूटी में लिखी हुई प्रतीत होती हैं जिनमें प्रेम, डर, अनिच्छा, पेेड़, चींटियाँ, नमक, हंसना और रोना, तुम, मछलियां और बाढ़ इत्यादि का नाम लिया जा सकता है। इस संग्रह की तमाम कविताओं में अलग-अलग मनोदशाओं और मानसिक उद्वेगों और संवेगों के मनोरम दृश्य हैं, जो कहीं-कहीं कवि के स्वानुभूत अनुभवों का नतीजा भी प्रतीत होते हैं। कुल मिलाकर संग्रह पठनीय है। कुछ बातें पाठकों पर छोड़ते हुए कविता को नमन।

कवि: अमित मनोज, कविता संग्रह: दुख कोई चिड़िया तो नहीं
प्रकाशक: अन्तिका प्रकाशन, गाजियाबाद।

डॉ. विजय विद्यार्थी, पोस्ट डॉक्टरल फैलो, हिन्दी-विभाग,
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र मोबाईलः9817554004

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