लघुकथा
गांव में रघबीर की घुड़चढ़ी हो रही थी। जब वे मंदिर के पास पहुंचे तो गांव के कुछ मनचले सवर्ण जाति के लड़कों ने उसे घोड़ी से उतार लिया और घोड़ी को भगा दिया।
दलितों ने उनका विरोध किया, तो सवर्णों ने अपनी धोंस दिखाने के लिए उनकी धुनाई कर डाली।
दलित अब पहले वाले दलित तो रहे नहीं कि अपमान का घूंट पीकर चुपचाप घर बैठ जाते। मैडिकल करवाकर उनके विरुद्ध केस दर्ज करा दिया।
पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने घर पहुंची, तो उनकी चौंध टूटी। वे यह भी जानते थे कि जो अपराध उन्होंने किया है इसमें कई साल के लिए जेल जाना पड़ सकता है।
सवर्णों की बैठकें होने लगी और दलितों से माफी मांगने लगे, कहने लगे – बच्चे हैं, गलतियां कर देते हैं। अतः इन्हें माफ कर दो। पर, दलित टस से मस नहीं हुए।
एक दिन गांव में बहुत बड़ी पंचायत हुई। रघबीर पर समझौते के लिए दबाव बनाया गया। रघबीर खड़ा हुआ और कहने लगा, ‘मैं समझौता कर सकता हूं, पहले यहां बैठे सभी बुद्धिजीवी बुजुर्ग मेरे एक प्रश्न का उत्तर देवें। पहले मुझे मेरा कसूर बताएं?’
पंचायत में मूर्छा-सी छा गई। किसी के पास उसके प्रश्न का कोई उत्तर न था।